24-Jun-2023, Saturday
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पेनुकोंडा अनंतपुर के एक दक्षिण कोरियाई रेस्टोरेंट ‘कंगनम’ के मैनेजर ने यह स्वीकार किया कि उनका रेस्टोरेंट केवल कोरियाई लोगों को ही प्रवेश करने की अनुमति देता है। पढ़िए तेजेंद्र शर्मा का आलेख।
लंदन: एक संपादक के तौर पर मेरा प्रयास रहा है कि अपने पाठकों का परिचय अनूठे विषयों से करवाता रहूं, इसके लिये चाहे मुझे कितना भी शोध क्यों न करना पड़े। मैं हमेशा विषय की सच्चाई की तह तक जाने का प्रयास करता हूं। विषय चाहे राजनीतिक हो या फिर सामाजिक, एक प्रयास अवश्य रहता है कि ईमानदारी से अपनी बात आपके समक्ष रख सकूं। बहुत से पाठक मेरी सोच से शायद सहमत न हों मगर वे भी यह नहीं कह सकते कि मैं झूठ बोल रहा हूं।
इसी सिलसिले में आज के विषय के बारे में जब सोच रहा था तो याद आई एक यू-ट्यूब वीडियो, और मैं जुट गया आप सब तक एक नया और ज़रा ‘हट-के’ वाला संपादकीय लिखने में। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह विषय आपको सोचने के लिये अवश्य मजबूर करेगा।
सबसे पहले आपको बताना चाहूंगा कि मुझे इक्कीस वर्ष की एअर इंडिया की फ़्लाइट परसर की नौकरी के दौरान एक बार भी दक्षिण कोरिया जाने का अवसर नहीं मिला, क्योंकि मैं वामपंथ के साथ अपने आप को नहीं जोड़ पाता इसलिये उत्तर कोरिया के मुकाबले मेरे मन में दक्षिण कोरिया के प्रति अधिक कोमल भाव रहे। अग्रज दिविक रमेश तो दक्षिण कोरिया की इतनी तारीफ़ें करते थे कि उनसे रश्क होने लगता था कि हाय भला हम वहां क्यों न गये। दो-तीन बार मौका बन भी रहा था मगर मैं जा नहीं पाया।
इससे पहले कुछ मित्रों से सोवियत रूस की बहुत तारीफ़ सुना करते थे। मगर जब 1978 में पहली बार रूस गया तो “सारे भेद खुल गये, राज़दार न रहा!” क्योंकि मुकाबला सीधा लंदन, न्युयार्क, पेरिस, रोम और टोकियो से था, इसलिये मॉस्को देखकर वामपंथी देशों के रेशे-रेशे सामने खुलते चले गये।
हाल ही में यूट्यूब पर कुछ ऐसे वीडियो देखने को मिले हैं कि दक्षिण कोरिया का नया या फिर कहें कि असली रूप सामने खुलता नज़र आने लगा है। उनके व्यवहार से अंग्रेज़ों को वो ज़माना याद आने लगा है जब दुकानों और रेस्टोरेंटों के दरवाज़े पर लिखा रहता था – “भारतीय और कुत्तों का भीतर आना मना है!”
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर नामक शहर में दक्षिण कोरिया की ‘किया-मोटर्स’ का एक विशाल कार निर्माण यूनिट है जो कि 530 एकड़ भूमि पर निर्मित है। पेनुकोंडा में इस कार निर्माण यूनिट में बहुत से कोरियाई रेस्टोरेंट और गेस्ट हाउस भी हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन रेस्टोरेंटों और गेस्ट हाउसों में भारतीयों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। वहां केवल कोरायाई मूल के लोगों को ही प्रवेश करने दिया जाता है।
यू-ट्यूब पर जारी एक वीडियो में दिखाया गया है कि पेनुकोंडा अनंतपुर के एक दक्षिण कोरियाई रेस्टोरेंट ‘कंगनम’ के मैनेजर ने यह स्वीकार किया कि उनका रेस्टोरेंट केवल कोरियाई लोगों को ही प्रवेश करने की अनुमति देता है। यह हैरानी की बात है कि भारत में ही एक विदेशी कंपनी भारतीयों के साथ ही भेदभाव का बरताव कर रही है।
मगर जब दो मित्रों ने वीडियो बनाना शुरू किया और मैनेजर से सीधे-सीधे सवाल किया कि यह भेदभाव भारत में कैसे चल सकता है, तो मैनेजर ने रेस्टोरेंट के मालिक को फ़ोन करके समझाया कि ये लोग तो मीडिया से हैं और ये वीडियो तो टीवी पर दिखाया जा सकता है। तब मालिक ने कहा कि इन लोगों को रेस्टोरेंट में बैठने दिया जाए और जो ये खाना चाहें उन्हें खाने दिया जाए।
यहां दक्षिण कोरिया के भारतीय-विरोधी रवैये को समझने के लिये ध्यान देना होगा कि इन रेस्टोरेंटों के मैनेजमेंट ने अपने स्टाफ़ भी नेपाली लोगों को रखा है। उन्हें भारतीय इस क़ाबिल नहीं लगते कि वे उनके भोजन को छू सकें। प्रश्न यह उठता है कि यदि यह सब हमारे अपने देश में हो रहा है तो फिर दक्षिण कोरिया में क्या कुछ हो रहा होगा!
सच तो यह है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (1) और अनुच्छेद 15 (2) के तहत दंडनीय है। बताया जाता है कि किया-कार प्लांट में करीब 15 कोरियाई रेस्टोरेंट और दस गेस्ट हाउस हैं जिनमें से अधिकांश में भारतीयों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। अभी यह नहीं पता चला है कि आंध्र प्रदेश सरकार या फिर केन्द्र सरकार ने इस बारे में क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की है या फिर कैसे कदम उठाए हैं।
ये सब तो भारत में हो रहा है। कोरिया के बहुत से शहरों में आपको ऐसे बोर्ड बहुत से डिपार्टमेंट स्टोर और दुकानों के बाहर भी लगे मिल जाएंगे जिन पर लिखा होगा – ‘भारतीयों का प्रवेश वर्जित; भारतीयों और पाकिस्तानियों का प्रवेश वर्जित’… मुसलमान और हिन्दू का प्रवेश वर्जित!… ‘इस्लाम और हिन्दू आऊट ! ’ हैरानी तो तब होती है जब किसी डिपार्टमेंट स्टोर में कोई भारतीय या पाकिस्तानी कोई कपड़ा ख़रीदने जाए और किसी कपड़े को छू ले तो सेल्समैन लगभग दौड़ा चला आएगा और उस कपड़े को साफ़ करने लगेगा जैसे किसी हिन्दू या मुसलमान के छू लेने से कपड़ा अपवित्र हो जाएगा। ऐसा राजधानी सियोल के बहुत से हिस्सों में लगातार होता है।
वैसे यह केवल भारतीयों तक सीमित नहीं है। लगभग सत्तर प्रतिशत विदेशियों की शिकायत है कि दक्षिण कोरिया में उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ा है। दक्षिण कोरिया आर्थिक रूप से भारत से एक छोटी इकॉनॉमी है। मगर उनका रवैया वही है जो कभी उपनिवेशवाद के दौर में ब्रिटेन का होता था। अपने आप को विशिष्ट समझना और दूसरों को नीचे दर्जे का।
राज नामक एक यू-ट्यूबर करीब नौ वर्षों से दक्षिण कोरिया में रह रहा है। कुछ समय पहले नई दिल्ली से उसके कुछ मित्र भी वहां उससे मिलने पहुंचे। मित्रों ने राज से किसी क्लब में जाने की बात कही। राज इससे पहले कभी किसी क्लब में नहीं गया था। उसके लिये भी यह एक नया ही अनुभव था। अपने इस नये अनुभव को राज ने रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया। जैसे ही राज अपने मित्रों के साथ एक क्लब में प्रवेश करने का प्रयास करता है, उसे दरवाज़े पर खड़ा गार्ड रोक लेता है और कहता है कि इस क्लब में भारतीयों का प्रवेश वर्जित है। वह सलाह देता है कि आगे के किसी क्लब में कोशिश करके देख लें क्योंकि उस क्लब में तो वे भीतर नहीं घुस सकते।
जब राज ने उससे बहस करनी चाही, तो गार्ड का जवाब था कि यह क्लब का रूल है। राज और उसके मित्र हैरान थे कि यह कैसा भेदभाव वाला नियम बनाया गया है। अभी राज का अनुभव का दायार पूरा नहीं हुआ था। अगले क्लब का गार्ड तो राज और उसके मित्रों की बाक़ायदा बेइज्ज़ती करके उन्हें वहां से भगा देता है। और तीसरे क्लब में तो किसी से पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि वहां तो उन्हें मुंह-चिढ़ाता एक बोर्ड लिखा मिल जाता है जिस पर लिखा रहता है कि पाकिस्तानी और भारतीयों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित है।
इस तमाम सिलसिले में रेखांकित करने वाली एक बात यह भी थी कि जब तीनों क्लबों में राज और उसके दोस्तों को क्लब में घुसने से रोका जा रहा था, वहां तमाशबीन के तौर पर कई कोरियाई मूल के लोग खड़े देख रहे थे और किसी ने भी इस अन्याय के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहा। राज ने इस वीडियो को यू-ट्यूब पर अपलोड भी किया था मगर दक्षिण कोरिया की पुलिस या किसी भी अधिकारी ने उस वीडियो का संज्ञान नहीं लिया।
यहां याद दिलाना चाहूंगा कि एक वर्ष पहले मुंबई में एक दक्षिण कोरियाई ब्लॉगर युवती के साथ दो युवकों ने बदसलूकी की। उस युवती ने अपना वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड कर दिया। भारत के पूरे सोशल मीडिया में यह वीडियो वायरल हो गया और कहा गया इन दो नवयुवकों – मोबीन चांद मोहम्मद शेख (19 वर्ष) और मोहम्मद नकीब सदरियालम अंसारी (20 वर्ष) ने भारत की बेइज्ज़ती करवा दी। वीडियो वायरल होने के बाद खार पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 के तहत मामला दर्ज कर आरोपी युवकों को गिरफ्तार भी किया।
1960 के दशक में लंदन में ऐसा हुआ करता था कि जब कोई भारतीय बस या ट्रेन में किसी सीट पर बैठ जाता था तो कोई भी अंग्रेज़ उसके साथ बैठने को तैयार नहीं होता था। यदि वहां साथ वाली सीट पर कोई अंग्रेज़ बैठा होता तो उठ कर कहीं और खड़ा हो जाता। दक्षिण कोरिया में आज 2023 में भी हो रहा है। जब कोई भारतीय पुरुष या महिला बस में किसी सीट पर बैठ जाते हैं तो कोरियाई लोग उसके साथ बैठने की तुलना में उठ कर खड़े होना पसन्द करते हैं।
दक्षिण कोरिया के बच्चों के दिमाग़ में भी ज़हर भरा जा रहा है। वे भी मानने लगे हैं कि भारतीय लोग कीचड़ जैसे गंदे होते हैं। बहुत से भारतीयों या फिर इंडो-कोरियाई युवक युवतियों को चित्र देखकर ही नौकरी के अयोग्य मान लिया जाता है। उन्हें इंटरव्यू के लिये बुलाया ही नहीं जाता। कोरिया में केवल सीवी से काम नहीं चलता। सीवी के साथ-साथ चित्र भी देना होता है। वहां सुन्दर और कोरियाई नख-शिख वाला चेहरे को ही नौकरी मिल पाती है।
हैरानी की बात यह है कि कोरिया में शिक्षा की दर 98.8 प्रतिशत है मगर वहां की बेरोज़गारी दर 19.8 प्रतिशत है। फिर ऐसी पढ़ाई किस काम की जो आपको बेहतर इन्सान न बनाए। हम सबको यह ग़लतफ़हमी है कि पढ़ने लिखने से इन्सान की सोच का दायरा बड़ा हो जाता है और दिल खुला। मगर दक्षिण कोरिया के मामले में ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। उनके दिमाग़ में यही बैठा है कि भारतीयों को कोरिया में निचले दर्जे के काम करने के लिये बुलाया जाता है। भला वे कैसे कोरियाई लोगों के समकक्ष हो सकते हैं।
पुरवाई को पूरी उम्मीद है कि भारत की राज्य सरकारें व केन्द्र सरकार और भारतीय युवक-युवतियां स्थिति की नज़ाकत को गंभीरता से लेंगे। दक्षिण कोरिया तक यह संदेश अवश्य पहुंचना चाहिये – “अगर तुहाडा कुत्ता टॉमी है तां साढा वी कोई कम नहीं!”
लेखक — लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं.