24-Jun-2023, Saturday
Sarve Bhavantu Sukhinaḥ
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FIJI HINDI SAMMELAN
जिस-जिस को ‘फ़िजिआने’ का प्रबंधन सौंपा गया, उसने अपने चमचों, कड़छों और पतीलों से विमान को भर दियाI हवाई जहाज़ में बैठी हर ‘हिन्दात्मा’ जानती है कि वह किस जुगाड़ से विमान पर चढ़ पाई है।
लंदन: यदि सोड़ा वाटर की बोतल खुली छोड़ दी जाए, तो उसकी गैस कुछ देर में उड़ जाती है यानी उसकी फ़िज़ ख़त्म हो जाती है। अब की बार फ़िजी के विश्व हिन्दी सम्मेलन से कुछ ऐसा ही अहसास विश्व भर में पहुंचा कि सम्मेलन से फ़िज़ कहीं गायब हो गई है। गुरुदेव सुधीश पचौरी जी का कहना है कि हर दो तीन बरस में जहाज़ भर हिन्दी का विदेश जाना हिन्दी की सेहत के लिए अनिवार्य है। हवाई जहाज़ में हिन्दी प्रेमी, हिन्दी सेवी और हिन्दी भक्त मौजूद रहते हैं और हमारे गुरुदेव तो थ्री-इन-वन हैं।
भारत की जुगाड़ संस्कृति
भारत में जुगाड़ संस्कृति की स्थापना रामायण काल से ही हो गई थी। जब राजा दशरथ के रथ के पहिये को महारानी कैकेई ने जुगाड़ से रोके रखा था और वक्त आने पर अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या की राजगद्दी का जुगाड़ कर लिया था। वर्तमान समय में एअरलाइन में भी चिपकाने वाली टेप का जुगाड़ चलता है। जहाज़ का जो भी हिस्सा गड़बड़ाता है, वहां टेप चिपका कर जुगाड़ू काम कर दिया जाता है। यहां तक कि बहुत बार तो आपको दरवाज़े पर भी टेप चिपका दिखाई दे जाएगा। एक मज़ेदार बात यह भी है कि हवाई जहाज़ में बैठी हर ‘हिन्दात्मा’ जानती है कि वह किस जुगाड़ से विमान पर चढ़ पाई है। वह यह भी जानती है कि हर जुगाड़ू किसी मामले में उनसे कम नहीं। मगर मजाल है कि कोई किसी की तरफ़ उंगली या अंगूठा दिखा दे। सब एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा भाव दर्शाते खीसें निपोरते आंखों-आंखों में यही भाव बनाए रखते हैं – “तुसी ग्रेट हो बादशाहो!” जिस-जिस को ‘फ़िजिआने’ का प्रबंधन सौंपा गया, उसने अपने चमचों, कड़छों और पतीलों से विमान को भर दिया। और जिस-जिस का नाम सूची में नहीं आया, वो स्वयंभू महान बन कर साधु-भाषा बोलने लगा।”
प्रवासी दिवस अंग्रेज़ी में क्यों?
हिन्दी के जहाज़ को भरने के लिए भी थ्री-इन-वन जुगाड़ एक्सपर्ट अपनी कला का श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए अपने सभी हथियारों का इस्तेमाल कर लेते हैं। वे साबित कर देते हैं कि विदेशी धरती पर जब तक वे हिन्दी भाषा पर अहसान नहीं कर देंगे तब तक हिन्दी भाषा वैश्विक नहीं बन पाएगी। विदेशी धरती पर वे हर बार हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बना आते हैं मगर वापस भारत आने पर हर वर्ष प्रवासी दिवस अंग्रेज़ी में मनाते हैं। फ़िजी यात्रा के लिये उधार के पंखों से उड़ने वाले सरकारी अधिकारियों को उड़ान भरने से ठीक कुछ पहले या फिर उड़ान से उतरते ही पंख-विहीन कर दिया गया। 15 से 17 ऐसे अधिकारियों को तो फ़िजी में विमान से उतरते ही बता दिया गया कि उनका दौरा ‘अनधिकृत’ है। इसलिये उन्हें तुरंत वापस भारत यात्रा पर निकलना होगा। सरकारी अधिकारियों को भला ऐसे व्यवहार की उम्मीद कहां रही होगी। मगर जो हुआ सो हुआ… सवाल यह है कि हुआ क्यों?
चार दिन पहले अधिकारियों की संख्या घटाई?
पता चला कि फ़िजी में 15 फरवरी को विश्व हिंदी सम्मेलन की शुरुआत से चार दिन पहले, वित्त मंत्रालय ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल सूची में अधिकारियों की संख्या 165 से घटाकर 51 कर दी। कल तक जो अधिकारी साहित्यकारों एवं पत्रकारों को अपने आगे-पीछे घुमाकर उन्हें विश्वास दिला रहे थे कि फ़िजी तो उनकी बाहों में होगा, वही आज पा रहे थे कि उनको पांव के नीचे से फ़िजी की ज़मीन अचानक सरक गयी थी। सौ से अधिक अन्य अधिकारियों पर अचानक बम फूटा जिन्हें प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा माना जा रहा था और जो फ़िजी की यात्रा करने के लिये पूरी तरह से तैयार थे। उन्हें विदेश मंत्रालय द्वारा अंतिम क्षणों में संदेश भेजा गया कि उनका टिकट रद्द कर दिया गया है। यही हाल बहुत से साहित्यकारों एवं हिन्दी त्रिपुरारियों के साथ किया गया। पहले उनके लेख स्वीकार कर लिये गये और उन्हें फ़िजी आने का निमंत्रण भेज दिया गया और फिर ऐन मौके पर उन्हें सूचित कर दिया गया कि उनका निमंत्रण कैंसिल कर दिया गया है। कुछ साहित्यकारों को बताया गया कि उनका आलेख तो स्वीकृत है मगर आपको फ़िजी आना अपने खर्चे पर होगा और रहने का जुगाड़ भी स्वयं ही करना होगा। वे अपने-अपने आलेख को बैठे निहार रहे हैं और कह रहे हैं कि ऐ फ़िजी – “मेरी किस्मत में तू नहीं शायद, मैं मगर तुझ से प्यार करता हूं…!”
ओ मेरी हिन्दी मैया!
मंत्री हो या संतरी, सब अचानक महत्वपूर्ण महसूस करने लगे। सब अपने चेले-चपाठों के पंख लगाने में जुट गये। और जिनको पंख नहीं लग पाए वे फ़िजी की ओर आंसू भरी नज़रों से ताकते हुए गा रहे थे, “पंख होते तो उड़ आते थे, ओ मेरी हिन्दी मैया!” आखिर यही लोग तो हिन्दी को वैश्विक भाषा बनाने की योग्यता रखते हैं। जो लोग रोज़ भारत में अपनी हिन्दी में अवधी, भोजपुरी, ब्रज और राजस्थानी का तड़का लगाने की वकालत करते नहीं रखते थे, अचानक हिन्दी के वैश्विक महत्व पर भाषण देने लगे। सकुचाती, शरमाती, लज्जाती हिन्दी हैरान होती रहती कि मुझे अभी तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का हिस्सा तो बनाया नहीं, सीधा “विश्व एकता” जैसा कठिन काम सौंप दिया है। बॉलीवुड की बात तो छोड़ दिया जाये। आम आदमी (आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी) सपने देखने लगा। फ़िजी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के बाद संयुक्त राष्ट्र के महासचिव सभी देशों के प्रमुखों से फ़ोन पर हिन्दी में बतिया रहे हैं। ऋषि सुनक ब्रिटेन की संसद में अपना भाषण हिन्दी में दे रहे हैं। जो बाइडेन यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ हिन्दी में युद्ध नीति पर बातचीत कर रहे हैं। और हिन्दी परेशान खड़ी भारत की संसद के द्वार की ओर कातर निगाहों से ताक रही है… सोच रही है… इस भवन की मुख्य भाषा मैं कब बन पाऊंगी?”
लेखक — तेजेन्द्र शर्मा, लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक