24-Jun-2023, Saturday
Sarve Bhavantu Sukhinaḥ
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RAMDEV
समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवास ने कहा था कि वर्ण बाद में आया, जातियां पहले। दरअसल जातियों का सिस्टम समझने के लिए वर्ण, एक चाबी की तरह काम करता है।
गाजियाबाद: देश के सर्वोच्च समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवास ने कहा था कि वर्ण बाद में आया, जातियां पहले। दरअसल जातियों का सिस्टम समझने के लिए वर्ण, एक चाबी की तरह काम करता है। इससे अनजान जाति के सामाजिक स्तर का आंकलन करने में सुविधा होती है। मान लीजिए आप दक्षिण भारत गए तो आप तो नाम से पता नहीं कर पाएंगे कि सामने वाला कौन सी सोशल पोजीशन रखता है तो इसे समझने के लिए वर्ण नाम की कुंजी बनी जो जाति की पोजीशन का ताला खोल देती है।
दूसरे, उन्होंने जाति के स्थिर होने की बात को क्रांतिकारी चुनौती दे डाली। वह बताते कि जाति की सोशल पोजीशन बदल भी सकती है। उन्होंने सुबूत पेश करते हुए कहा कि जब कोई जाति किसी इलाके में ताकतवर हो उठती है तो वह अपनी पोजीशन को टाटा बॉय बोल कर हायर पोजीशन में होने का दावा करने लगती है।
इससे वर्ण नहीं बदलता। वर्ण को अगर क्लास की तरह देखें तो जाति की पोजीशन पहले से ऊंची तो हो सकती है, लेकिन वर्ण यानी क्लास किसी भी हालत में नहीं बदल सकता। वर्ण जन्म आधारित है। जाति में सीमित मोबिलिटी आ सकती है, लेकिन वर्ण में मोबिलिटी नहीं हो सकती।
हाल ही में योग एवं दवा कारोबारी रामदेव ने खुद को अग्निहोत्री ब्राह्मण बताया और तीन चार जातियों वेदी, द्विवेदी, त्रिवेदी और चतुर्वेदी का होने का दावा किया। सामाजिक ऊंच नीच वाला जाति का सिस्टम केवल हमारे देश में है और कौन किसमें रहेगा। यह खुद इंसान तय नहीं करता, बल्कि ये जन्मना होता है। जन्म ही तय करेगा कि आपका वर्ण क्या है। जाति की मोबिलिटी भी पीढ़ी दर पीढ़ी के बाद ही आती है, लेकिन वर्ण में तो वो भी नहीं आती।
इस सिस्टम में दो तीन बाते फंसने वाली हैं। वो ये कि जब इंटरकास्ट मैरिज हो तो स्त्री का जाति का क्या होगा पर यह तय है कि इंटरकास्ट मैरिज की संतान को खुद यह तय करने का अधिकार है कि वह किस जाति में रहे, पिता की या माता की। इसी तरह जो लोग हिंदू फोल्ड में कन्वनर्ट होते हैं उनकी वर्ण जाति पोजीशन को लेकर भी क्लेरिटी नहीं है। एक सीमा तक इसमें उनका व्यवसाय ही रोल प्ले करेगा।
मसला यह है कि पहली बात यह है कि रामदेव कारोबारी हैं तो वे वैश्य वर्ण के हुए। दूसरी बात यह है कि वैद्य या औषधि का काम करने वाले को भी उच्च वर्णी नहीं माना गया है। तीसरी बात यह है कि रामदेव की यादव जाति, शूद्र वर्ण में आती हैं। चौथी बात यह है कि साधु महात्माओं की जाति की उपेक्षा की जाती रही है। जाति सामाजिक जीवन की बात है, जो लोग सामाजिक जीवन ही नहीं जी रहे, जाति उनका क्या करेगी। जो भी हो, रामदेव खुद से दावा नहीं कर सकते कि वे किस जाति और वर्ण से हैं। हमारा जाति सिस्टम किसी के दावे पर नहीं चलता। ये जन्मना होता है और ये बात किसी भी सूरत में बदली नहीं जा सकती। जाति का इस तरह से फिक्स हो जाना ही हमारी सामाजिक समस्याओं की एक जड़ है। सामाजिक ऊंच नीच फिक्स ना होकर मोबाइल होना चाहिए तभी समाज में सबको मौका मिल सकेगा।
लेखक शोभित जायसवाल, पेशे से पत्रकार हैं.