24-Jun-2023, Saturday
Sarve Bhavantu Sukhinaḥ
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#ISRAEL HAMAS WAR
इजरायल के वाइट फॉस्फोरस के जवाब में हमास केमिकल हथियारों से देना चाहता है. सफेद फॉस्फोरस ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही आग पकड़ लेता है और पानी से बुझाया नहीं जा सकता.
तेल अवीव: गत सात अक्टूबर को अचानक हमास के लड़ाकों ने आसमान, जमीन और पानी के रास्ते इजराइली शहरों पर ऐसा हमला किया. हमास ने चंद मिनटों में इजरायल पर हजारों रॉकेट दागे. इजरायल को संभलने का मौका तक नहीं मिला. पूरी दुनिया दंग रह गई कि मोसाद जैसी काबिल एजेंसी नाकाम हो गई.
इजरायल ने जब ठहर कर पलटवार किया तब गाजा में तबाही का मंजर आम हो गया. हर तरफ लाशों के ढेर लग गए. इजरायल ने आसमान से कहर बरपा दिया, जिसका खामियाजा फिलिस्तीन के बेगुनाहों को भी भुगतना पड़ा. यह जंग अब भी जारी है और अब हजारों लोगों की जान लेने के बाद भी जंग रुकने के बजाय और खतरनाक होती जा रही है. इजरायल हमास पर लगातार एयरस्ट्राइक कर रहा है.
क्या होता है फॉस्फोरस बम
इसी दौरान फिलिस्तीन ने आरोप लगाया था कि इजरायल ने उसके इलाके में सफेद फॉस्फोरस बम गिराया. फॉस्फोरस बम का व्यवहार परमाणु बम जैसा ही होता है. ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही जलने लगता है. धमाके के आसपास के इलाके से ऑक्सीजन खत्म कर देता है. सारी ऑक्सीजन खुद के जलने में लगा देता है. जब तक फॉस्फोरस पूरी तरह से जलकर खत्म नहीं हो जाएगा तब तक तबाही फैलाता रहेगा.
इस बम को सफेद फॉस्फोरस और रबर को मिलाकर तैयार कया जाता है. फॉस्फोरस मोम जैसा केमिकल होता है, जो हल्का पीला या रंगहीन होता है. इससे सड़े हुए लहसुन जैसी तेज गंध आती है. एक बार ऑक्सीजन के संपर्क में आते भी आग पकड़ लेता है और फिर ये पानी से भी बुझाया नहीं जा सकता. यह इसे बेहद खतरनाक बनाती है. फॉस्फोरस बम 1300 डिग्री सेल्सियस तक जल सकता है, इसलिए यह आग से कहीं ज्यादा जलन और जख्म देता है. यहां तक कि यह हड्डियों तक को गला सकता है.
मल्टी-ऑर्गन फेलियर का खतरा
ऑक्सीजन के लिए रिएक्टिव होने की वजह से जहां भी गिरता है, उस जगह की सारी ऑक्सीजन तेजी से सोखने लगता है. ऐसे में जो लोग इसकी आग से नहीं जलते, वे दम घुटने से मर जाते हैं. ये तब तक जलता रहता है, जब तक कि पूरी तरह से खत्म न हो जाए. यहां तक कि पानी डालने पर भी ये आसानी से नहीं बुझता, बल्कि धुएं का गुबार बनाते हुए और भड़कता है.
इसके संपर्क में आने पर इंसान जिंदा बच भी जाए तो वह किसी काम का नहीं रह जाता. लगातार गंभीर संक्रमण का शिकार होता रहता है और उम्र खुद ब खुब कम होती जाती है. कई दफा यह त्वचा से होते हुए खून में पहुंच जाता है. इससे हार्ट, लीवर और किडनी सबको नुकसान पहुंचता है और मरीज में मल्टी-ऑर्गन फेलियर हो सकता है.
पहले एवं दूसरे वर्ल्ड वॉर में इस्तेमाल
फॉस्फोरस बम (Phosphorus Bomb) का उपयोग पहले और दूसरे विश्व युद्ध में काफी ज्यादा किया गया. इराक युद्ध के समय अमेरिका ने इसे काफी ज्यादा उपयोग किया. यह काफी ज्यादा खतरनाक श्रेणी का बम है. वियतनाम युद्ध के समय भी इसे फोड़ा गया. अरब और इजरायल के युद्ध के दौरान भी इसका उपयोग किया गया था. दूसरे वर्ल्ड वॉर में इस बम का जमकर उपयोग हुआ था. खासकर अमेरिकी सेना ने जर्मनी के खिलाफ खूब बम गिराए थे.
1977 में जेनेवा कन्वेंशन में सफेद फॉस्फोरस के इस्तेमाल पर अंतरराष्ट्रीय बैन लगा दिया गया था, लेकिन युद्ध में इसे फोड़ सकते हैं. 1997 में यह तय किया गया कि अगर रिहायशी इलाकों में इसका उपयोग किया गया तो इसे रासायनिक हथियारों की कैटेगरी में रखा जाएगा. इस कानून पर रूस ने भी हस्ताक्षर किए थे.
हमास के पास केमिकल हथियार
आतंकी संगठन अलकायदा के पूर्व सरगना ओसामा बिन लादेन के बेटे ने केमिकल हथियार को लेकर एक सनसनीखेज खुलासा किया था. उमर लादेन ने दावा किया था कि उसके पिता लादेन ने बचपन से ही उसे अपने नक्शे कदम पर चलने की ट्रेनिंग दी थी. उमर को बाकायदा बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी. इतना ही नहीं लादेन ने उसके कुत्तों पर केमिकल हथियार का ट्रायल भी किया था. लादेन के चौथे बेटे उमर ने एक इंटरव्यू के दौरान अपने पिता के साथ अपने संबंधों पर खुलकर बात की थी. बता दें कि लादेन का 42 वर्षीय बेटा उमर इस वक्त अपनी पत्नी जैना के साथ फ्रांस में रहता है.
सभी हथियारों में किसी ना किसी केमिकल का इस्तेमाल होता है और बारूद भी एक तरह का केमिकल ही है. लेकिन जिन केमिकल हथियारों की बात की जा रही है, वह अलग हैं. ऐसे केमिकल हथियार गैस या लिक्विड का एक भयानक मिश्रण होते हैं, जिनमें बड़ी तादाद में तबाही मचाने की क्षमता होती है. ये हथियार इंसानों के अलावा जानवरों और पक्षियों को गंभीर रूप से बीमार कर देते हैं. इसका सबसे वीभत्स चेहरा यह है कि इसके इस्तेमाल के बाद लोगों की मौत तड़प-तड़पकर होती है. कई मामलों में लोगों के शरीर पर फफोले पड़ जाते हैं, फेफड़ों का गंभीर क्षति पहुंचती है. इंसान अंधा भी हो जाता है.
इन हथियारों से होती है दर्दनाक मौत
पहली बार रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध (1914 से 1918) में हुआ था. तब जंग में दोनों पक्षों को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए दुम घोंटने वाली क्लोरीन फॉस्जीन, त्वचा पर जानलेवा जलन पैदा करने वाली मस्टर्ड गैस का इस्तेमाल किया गया था. उस समय इन खतरनाक हथियारों की वजह से एक लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं. कोल्ड वॉर के समय इस तरह के वेपन का सबसे ज्यादा डेवलपमेंट और भंडारण देखा गया. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक केमिकल वेपन से 10 लाख से ज्यादा आधिकारिक मौतें हुई हैं.
नब्बे के दशक में केमिकल वेपन को लेकर इतनी ज्यादा चर्चा होने लगी कि 1997 में इसके खिलाफ OPCW नामक एक संगठन खड़ा करना पड़ा, जो संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करता है. दुनिया के 192 देश ऑर्गनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपन्स (OPCW) के सदस्य हैं. इसका हेडक्वार्टर नीदरलैंड के 'द हैग' में हैं. यह नोबेल प्राइज जीतने वाला दुनिया का 22वां संगठन है.