क्या होती है 'कल्चरल लेग' थ्योरी
गाजियाबाद: अमेरिकी समाजशास्त्री विलियम एफ. ऑगबर्न ने कहा था कि साइंस जिस स्पीड से तरक्की कर लेती है, उस स्पीड से इंसानी समाज आगे नहीं बढ़ पाता और चीजें सिंक्रोनाइज्ड नहीं हो पातीं, उनमें तालमेल नहीं बैठ पाता। इससे कल्चर और इनोवेशन में एक गैप आ जाता है।
समाजशास्त्री ऑगबर्न ने कल्चर लेग थ्योरी के जरिये समाज और साइंस के बीच आने वाले बदलाव के अंतर को समझाया है।
इस कान्सेप्ट को उन्होंने ‘कल्चरल लेग’ (Cultural Lag) कहा। यह बहुत लोकप्रिय कांसेप्ट है और जो लोग सोशल चेंज को किताबों से पढ़ते हैं वो इससे वाकिफ़ हैं। ऑगबर्न की यह बात समाज आ रही तब्दीली के मिजाज को समझने में काम आती है।
मिसाल के तौर पर एटीएम मशीन से पैसे निकालने के बाद उसको गिनने की आदत। जब मशीन ने गिन कर दे दिए तो कुछ हो नहीं सकता। मशीन से आप कैसे कहोगे कि ये वाला नोट बदल दो या कम हैं या ज्यादा हैं।
हममें नोट गिनने की आदत मुनीम जी या खजांची से आती है। टेक्नोलॉजी ने मुनीम को एटीएम से रिप्लेस कर दिया लेकिन आदत थोड़े ही जाती है। यही कल्चरल लेग है। अनुवादकों ने इसका तर्जुमा सांस्कृतिक पिछड़ापन किया है, जो गलत है लेकिन चलता यही है। यहां मैं यह मानकर चल रहा हूं कि मशीन का कैलीब्रेशन दुरुस्त है और वह सही काम कर रही है।
हाल में इंडिगो फ्लायट में दिल्ली के गुस्साय पैसेंजर ने हवाई जहाज के पायलट को पीट दिया, क्योंकि हवाई जहाज के चलने में देर हो रही थी। फ्लायट के न सरकने से नाराज युवा अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सका और दिल्ली की आत्मा ने उसे आवाज दी कि दिखा दो हम दिल्ली से हैं।
ऑगबर्न होते तो यही कहते कि दिल्ली की ब्लू लाइन बस से चलने वाले हवाई जहाज का सफर रहे हैं तो, यहां हो ये रहा है कि आने जाने की तकनीक तो बदल गई लेकिन आदत बस वाली ही है वो नही जाएगी। चला ले भाई, अब तो चला ले..बोलते बोलते युवा थक गया तो उसने वही किया जो दिल्ली में आम बात है।
मेरा सजेशन है कि बस में तैनात होने वाले सुरक्षा मार्शल की तरह हवाई जहाज में भी एयर सुरक्षा मार्शल की नियुक्ति होनी चाहिए जो इस तरह की मार पिटाई से पायलट और सेवा में तैनात कर्मचारियों की सुरक्षा कर सके। अगर प्लेन बड़ा है तो उसमें जीआरपी की पुलिस चौकी भी बना देनी चाहिए।
लेखक शोभित जायसवाल, पेशे से पत्रकार है.