क्या होता है ‘लिविंग फ़्यूनरल’ ?
लंदन: यह बात करीब पांच से छः वर्ष पूर्व ख़बरों में आई थी कि कोरिया में कुछ लोग अपना अंतिम संस्कार अपने जीवन में ही कर रहे हैं। यहां लंदन में भी एक समाचार सुर्खियों में आया था कि एक्ट्रेस डॉन फ़्रेंच ने अपनी सैंतीस वर्षीय मित्र क्रिस हैलेंगा के आग्रह पर उसके ‘लिविंग फ़्यूनरल’ (मृत्यु से पहले अंतिम संस्कार) में अपने लोकप्रिय टीवी सीरियल 1994-2020 के लोकप्रिय चरित्र जेराल्डीन ग्रेंजर के संवाद बोल कर दिखाए।
‘लिविंग फ़्यूनरल’ होता क्या है
आख़िर यह ‘लिविंग फ़्यूनरल’ होता क्या है और क्यों होता है? कौन हैं वो लोग जिन्हें अपना अंतिम संस्कार देखने की चाह होती है? दक्षिण कोरिया में इस सोच से बहुत से लोग प्रभावित हैं। वे अपनी मृत्यु तक इंतज़ार नहीं करना चाहते। वे चाहते हैं कि उनकी आँखों के सामने ही उनके मित्र, रिश्तेदार, चाहने वाले उनके जीवन की उपलब्धियों के बारे में, उनकी विशेषताओं के बारे में चर्च में खड़े होकर बात करें।
विश्व के बहुत से देशों में माना जाता है कि ‘अंतिम संस्कार’ और ‘जीवन का जश्न’ दो अलग तरीके हैं मृतक का सम्मान करने के लिये। अंतिम संस्कार आमतौर पर गंभीर आयोजन होता है जहां इन्सान की मृत्यु हो चुकी होती है और इसे एक धार्मिक अनुष्ठान के तौर पर देखा जाता है जो कि परंपराओं के अनुसार होता है।
‘लिविंग फ़्यूनरल’ में कोई धार्मिक बंधन नहीं
वहीं ‘लिविंग फ़्यूनरल’ में ऐसा कोई धार्मिक बंधन नहीं है। ऐसे आयोजन में मौज मस्ती भी हो सकती है क्योंकि व्यक्ति की अभी मृत्यु हुई नहीं है। ऐसे आयोजन में मरने वाले के जीवन की अच्छाइयों का ज़िक्र उसके सामने किया जाता है।
एक बात और अंतिम संस्कार इन्सान की मृत्यु के तुरन्त बाद होता है जबकि ‘लिविंग फ़्यूनरल’ या ‘जीवन का जश्न’ इन्सान के जीवन काल में कभी भी किये जा सकते हैं। और फिर अंतिम संस्कार के लिये शव या अस्थियां ज़रूरी हो जाती हैं जबकि ‘जीवन का जश्न’ के लिये ऐसी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
सियोल में ह्योवोन हीलिंग नामक सेंटर
यह बताया जाता है कि दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में ह्योवोन हीलिंग नामक सेंटर है जो फ्यूनरल सर्विस नामक कंपनी की वित्तीय मदद से इच्छुक व्यक्तियों का नकली अंतिम संस्कार से संबंधित कार्यक्रम का आयोजन करता है। बताया जाता है कि अब तक हजारों लोग इस प्रकार अपना अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।
इस कार्यक्रम में पहले एक भाषण होता है जिसमें तमाम अंतिम संस्कार से जुड़ी तमाम सूचनाएं प्रतिभागियों को दी जाती हैं। उन्हें कुछ निर्देश दिए जाते हैं और साथ ही एक वीडियो दिखाया जाता है। उसके बाद शामिल हुए लोगों को एक ऐसे कमरे में ले जाया जाता है जिसमें हल्की रौशनी होती है और जो गुल-दाउदी के फूलों से सजा होता है।
एक प्रतिभागी ने अपने ब्लॉग में लिखा
वहां बैठकर लोग अपनी वसीयत लिखते हैं। फिर उन्हें ताबूत में लिटा दिया जाता है। काले कपड़े पहना एक कठोर-सा दिखता आदमी ताबूतों को बंद करता है और प्रतिभागियों को दस मिनट अपने-अपने ताबूत में बिताने पड़ते हैं। इस नकली अंतिम संस्कार कार्यक्रम में शामिल हुए एक प्रतिभागी ने अपने ब्लॉग में लिखा था, “ताबूत के अंदर रोशनी की एक भी किरण नहीं आ रही थी, और दस मिनट तक उस अंधेरे, दम घुटने वाले माहौल में बिताते हुए मुझे रोना आ रहा था।”
याद रहे कि इन अंतिम संस्कार आयोजनों में शामिल होने वाले कुछ लोग ख़ासे बीमार होते हैं तो कुछ मानसिक रूप से परेशान होने के कारण आत्महत्या की बात सोच रहे होते हैं। एक प्रतिभागी ने अपने अनुभव के बारे में लिखते हुए कहा था कि ताबूत में घुसने से पहले तक उसके दिमाग़ में आत्महत्या करने का विचार बहुत प्रबल था। मगर दस मिनट ताबूत में बिताने के बाद मेरे मन से आत्महत्या के विचार पूरी तरह से निकल गये।
संस्था के निर्देशक जियोंग रखते हैं विशेष नज़र
2012 से लेकर अब तक हज़ारों लोग इन कार्यक्रमों में हिस्सा ले चुके हैं। संस्था के निर्देशक जियोंग ऐसे लोगों पर विशेष नज़र रखते हैं जिनमें आत्महत्या करने की प्रवृत्ति महसूस की जाती है। आयोजन की समाप्ति पर वे प्रतिभागियों से बातचीत करते हैं और कहते हैं, “आपके जीवन का पुराना आवरण उतर गया है। यह आप लोगों का पुनर्जन्म है; इसलिये इसे अब एक नये सिरे से जियें।”
अधिकांश लोगों का कहना है कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के बाद से वे तरोताज़ा महसूस कर रहे हैं, और अब उन्हें जीवन को देखने का एक नया नज़रिया मिल गया है। अढ़ाई घंटे के इस कार्यक्रम की समाप्ति के बाद प्रतिभागियों को सहज होने में कुछ समय तो लगता ही है। मगर शीघ्र ही वे बातचीत करने लगते हैं और आपस में हंसने लगते हैं। और हाँ… अपने-अपने ताबूत के साथ सेल्फ़ी भी लेने लगते हैं।
जीवन ही की तरह मृत्यु भी एक शाश्वत सत्य
सच तो यह है कि आज के दौर में बहुत से लोग कई कारणों से अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं। फ़िलहाल तो हम दक्षिण कोरिया की बात कर रहे हैं मगर जस्टिन बीबर (कनाडा का एक लोकप्रिय सिंगर) जैसे लोग भी मरने से पहले अपने अंतिम संस्कार की तैयारी कर चुके हैं। जीवन ही की तरह मृत्यु भी एक शाश्वत सत्य है। हम इससे कितना भी भागने का प्रयास कर लें, मृत्यु तो एक न एक दिन हर किसी को आनी ही है। इसलिये बेहतर तो यही होगा कि जीवन की अंतिम सच्चाई को जितनी जल्दी स्वीकार कर लिया जाए और इसकी तैयारी भी कर ली जाए, उतना ही बेहतर होगा।
जहां दक्षिण कोरिया में यह आयोजन सामूहिक रूप से होता है, अन्य देशों में लोग निजी तौर पर अपना अंतिम संस्कार अपने जीवन काल में कर लेते हैं। आज के सोशल मीडिया के जीवन में तो यह जानने की भी उत्कंठा बनी रहती है कि किसी के मरने की ख़बर वाली पोस्ट पर कितने लाइक या कमेंट मिल रहे हैं। मरने वाला जानना चाहता है कि उसके मरने के बाद उसके मित्र, दुश्मन, रिश्तेदार उसकी मृत्यु की पोस्ट पर क्या-क्या टिप्पणियां करते हैं।
क्रिस हेलेंगा और डॉन फ़्रेंच
क्रिस हैलेंगा को 2009 में कैंसर की चौथी स्टेज होने के कारण डॉक्टरों ने केवल दो वर्ष तक जीवित रहने का समय दिया था। मगर अपने जीवट के कारण वह 14 साल तक जी गयी। मगर जब कैंसर की चौथी स्टेज ने उसे पूरी तरह से तोड़ दिया तो उसके मन में यह इच्छा जागी कि वह अपने लिये ‘लिविंग फ़्यूनरल’ करवा ले। अपने इस ‘जीवन के जश्न’ में अपनी मित्र डॉन फ़्रेंच से कहे कि वह अपने टीवी सीरियल वाले संवाद उसके अंतिम संस्कार के आयोजन में बोले। डॉन फ़्रेंच ने अपने किरदार जेराल्डीन ग्रेंजर जैसे कपड़े पहन कर अपने संवाद भी बोले और अपनी मित्र क्रिस हैलेंगा के जीवन के बारे में सभी उपस्थित मेहमानों को बताया भी।
जहां क्रिस हैलेंगा जैसे लोग आगे आकर अपना ‘लिविंग फ़्यूनरल’ करवाने का निर्णय ले रहे हैं वैसे-वैसे ही पारंपरिक फ़्यूनरल एजेंट भी ‘लिविंग फ़्यूनरल’ की सेवा अपने मीनू कार्ड में शामिल करने लगे हैं। ये ‘लिविंग फ़्यूनरल’ बिना लाश के होते हैं। लाश का चर्च में होना आवश्यक नहीं। इन्सान चाहे तो स्वयं उपस्थित भी रह सकता है या फिर घर से ज़ूम इत्यादि पर शामिल हो सकता है। अब मौत के बहुत से इंद्रधनुष आसमान में दिखाई देने लगेंगे… सब का अपना-अपना इंद्रधनुष!
लेखक - तेजेन्द्र शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और www.thepurvai.com के लंदन निवासी संपादक हैं).