इसकी शुरुआत तब हुई थी जब जापान में शहरी-करण तेज़ी

किराये पर परिवार…!

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20,दिसम्बर 2023, (अपडेटेड 27,दिसम्बर 2023 03:24 AM IST)

लंदन: जापान में अब किराये के रिश्तेदार मिलने लगे हैं। डेली वेज वाले कलाकार भी हैं। यह कलाकार चर्च में साथ जाने के लिये, किसी पार्टी में परिवार बनने के लिये, स्कूल में विद्यार्थी के अभिभावक बनने के लिये यानी कि किसी भी किरदार को निभाने को तैयार होते हैं बस दाम सही मिल जाने चाहिये। यहां लन्दन में अकेलापन किसी बीमारी से कम नहीं होता… जो अकेलेपन का शिकार है वह तो बीमार होता ही है मगर उसके अकेलेपन को देख कर महसूस करने वाले की आंखें गीली हुए बिना नहीं रह पातीं।  मैनें अपने स्मार्ट फ़ोन से उसके घर का पता ढूंढ लिया और उसे उसके घर पहुंचा दिया। अपने घर को भूल जाने का दर्द तब पहली बार महसूस किया…

फैल रहा हैं भारत में भी अकेलापन 

यह अकेलापन ब्रिटेन और यूरोप तक सीमित नहीं है। इसे भारत के महानगरों में भी महसूस किया जा सकता है। सच तो यह है कि मुझे स्वयं अकेला रहने का अभ्यास है मगर मैंने इस अकेलेपन को एकांत में परिवर्तित कर लिया है। मुझे एक वैश्विक परिवार की अनुभूति मेरे वो तमाम मित्र और शोधार्थी देते हैं जो निरंतर मुझसे संपर्क बनाए रखते हैं और पल भर के लिये भी मुझे अकेला महसूस नहीं करने देते। जापान में अकेले रहने का चलन इतना बढ़ चुका कि अब वहां पारिवारिक ढांचा बुरी तरह से चरमरा रहा है… लगभग ख़त्म हो रहा है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन एंड सोशल सिक्योरिटी का डेटा कहता है कि साल 2040 तक जापान के 40 प्रतिशत से ज्यादा घरों में सिंगल लोग होंगे, जो शादी की औसत उम्र पार कर चुके होंगे। परिवार के नाम पर उनके पास बूढ़े माता-पिता होंगे। ऐसे ही अकेले लोगों के अकेलेपन को दूर करने के लिये जापान में रेंटल-फैमिली बिजनेस चल पड़ा है। इसमें किराये पर परिवार के सदस्य मिल सकते हैं।

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काम को लेकर एक तरह का पागलपन

जापानियों में काम को लेकर एक तरह का पागलपन देखा जा सकता है। यहां तक कि बहुत अधिक काम करने के चक्कर में बहुत सी मौतें भी होने लगी हैं। इसके बाद भी जापान में युवा से लेकर बूढ़े तक सभी लगातार काम किए जा रहे हैं। वे न तो परिवार को वक्त दे पाते हैं, न ही उन्हें परिवार बनाने की फुर्सत है। यही वजह है कि वहां परिवार नाम की संस्था लगभग समाप्त होने की कगार पर है।

सच तो यह है कि अब यह एक उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है। अलग-अलग रिश्तेदारों के लिये पूरे कैटेलॉग तक उपलब्ध हैं। भिन्न श्रेणियों के लिये किराये भी कम या ज़्यादा हैं। बूढ़े मां या बाप की देखभाल के लिये (जीवन) साथी की ज़रूरत हो या फिर स्वयं बूढ़े लोग किसी जवान बेटे बेटी का सहारा ढूंढ रहे हों… तमाम तरहे के विकल्प उपलब्ध करवाए जा सकते हैं।

स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि यहां लोग कुछ घंटो के लिए दोस्त तक किराये पर लेते हैं जिनके साथ वे थोड़ी देर बातचीत ही कर सकें या फिर कुछ वक्त बिता सकें। यहां रोमांटिक साथी भी किराये पर मिलते हैं। किराये के लिए ऐसे पति-पत्नी भी उपलब्ध होते हैं जिन्हे बच्चों के साथ कहीं दावत वगैरह में ले जाना हो। लोगों की पसंद नापसंद का ख्याल रखा जाता है और यहां तक कि भावनात्मक सामग्री तक विकल्पों के तौर पर दी जाती है।

जापान में शहरीकरण से उत्पन्न हुई यह स्थिति 

ज़ाहिर है कि हम सोचेंगे कि किसी भी देश में अचानक यह स्थिति कैसे उत्पन्न हो गई। सच तो यह है कि इसकी शुरुआत तब हुई थी जब जापान में शहरी-करण तेज़ी से बढ़ रहा था और युवा नौकरी करने के लिए अकेले ही शहरों में रहने आने लगे थे। ऐसे लोगों के लिए रिश्तेदारों की सुविधा देने से शुरुआत हुई और आज यह काम बहुत सारी कम्पनियां सफल बिज़नेस के तौर पर कर रही हैं। यहां केवल दो हजार येन में ही कुछ घंटों के लिए माता, पिता, भाई, बहन आदि किराये पर मिल जाते हैं। इस कारोबार में भी अकेले रहने वाले युवा ज्यादा हैं जो कमाने के साथ परिवार के माहौल को खुद को परखना चाहते हैं।

इस बिज़नेस में सबसे सफल कंपनी जो अधिकांश रिश्तेदार उपलब्ध करवा देती है उसका नाम है ‘फ़ैमिली रोमांस’। पिछले कुछ सालों में इसने ख़ासी लोकप्रियता हासिल की है। कंपनी के सी.ई.ओ. इशी युइची एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति हैं। उनकी एक महिला मित्र थी जो कि एक ‘सिंगल मदर’ यानी कि ऐसी माँ थी जिसका पति उसके साथ नहीं था। उनकी मित्र ने इशी युइची को बताया कि उसके ‘सिंगल मदर’ होने की वजह से उसके पुत्र पर ख़ासा नकारात्मक असर पड़ रहा है। एक टीवी इंटरव्यू में उस महिला मित्र ने बताया कि जब उसके दोस्त ने उसके बेटे का पिता होने का किरदार निभाना शुरू किया तो बच्चे पर तो असर दिखाई दिया ही बल्कि उसके बेटे की किंडरगार्डन समिति के रुख में भी परिवर्तन दिखाई देने लगा। इसके बाद ही दोनों ने सोचा कि इसे एक व्यवसाय का रूप भी दिया जा सकता है।

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‘फ़ैमिली रोमांस’ कंपनी का ख़ासा विस्तार

अब ‘फ़ैमिली रोमांस’ कंपनी का ख़ासा विस्तार हो चुका है। मगर कंपनी ने कुछ बुनियादी नियम भी बना रखे हैं। एक व्यक्ति एक समय में केवल पांच परिवारों के लिये ही भूमिका निभा सकता है। और उन्हें इस झूठे रिश्ते की बात को छिपा कर भी रखना होगा। यही काम युईची को सबसे अधिक मुश्किल काम लगता है। जिन बच्चों को समझा दिया गया है कि अमुक व्यक्ति उनका पिता है, उसे यह भूमिका तब तक निभानी होगी जब तक असली माता या पिता सबके सामने सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार न हो जाएं।

हमें याद रखना होगा कि मानवीय संपर्क का अभाव अपने आप में एक जेल की तरह का आभास दे सकता है। जो लोग ऐसी स्थितियों से पीड़ित होते हैं वे अक्सर निराश महसूस करते हैं और अवासद में पड़ जाते हैं। यही आगे चलकर बीमारी का कारण बन सकता है और व्यक्ति की उम्र कम कर सकता है। यह चलन जापान में कुछ इस कदर बढ़ गया कि किराये के परिवार का उद्योग एक सच्चाई के रूप में उभर कर सामने आ गया।

‘फ़ैमिली रोमांस’ ने पत्नी और बेटी किराये पर दी 

एक व्यक्ति जिसने अपने लिये पत्नी और बेटी किराये पर ली थी, उनके साथ रहता ख़ुश महसूस कर रहा है। जब तक उस व्यक्ति से उसके असली परिवार की बात न की जाए तो वह उसके चेहरे पर निरंतर प्रसन्नता दिखाई देती है। सच तो यह है कि उसकी पत्नी की एक लंबी बीमारी के बाद कई साल पहले मृत्यु हो गई थी। उसके बच्चे उससे अलग हो गए और वह रह गया अकेला… ऐसे में ‘फ़ैमिली रोमांस’ ने उसे पत्नी और बेटी किराये पर देकर उसके जीवन में ख़ुशियों के रंग भर दिये।

इशी युइची स्वयं भी एक एक्टर है। वह क्ई वर्षों से एक 12 वर्षीय लड़की के पिता का किरदार निभा रहा है। उस लड़की के पिता की मृत्यु ऐसी उम्र में हो गई थी कि लड़की को उनका चेहरा तक याद नहीं है। उसके लिये इशी युइची ही पिता है।

यदि ग्राहक कभी भी सच्चाई प्रकट नहीं करता है, तो उसे यह भूमिका अनिश्चित काल तक जारी रखनी होगी। अगर बेटी की शादी होती है तो उसे पिता बनना होगा, और फिर किसी दिन नाना का किरदार भी निभाना पड़ सकता है। इसीलिये ग्राहक से यह पहले ही पूछ लिया जाता है, “क्या आप इस झूठ को लंबे समय तक छिपाए रखने के लिये तैयार हैं?”

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2,500 से अधिक एक्टरों को नौकरी

‘फ़ैमिली रोमांस’ का बिज़नस कुछ इस क़दर फैल गया है कि पांच वर्ष पहले तक युईची ने 2,500 से अधिक एक्टरों को इस काम के लिये नौकरी दे रखी थी। ज़रा सोचिये सिनेमा में जब कलाकार इकट्ठे काम करते हैं तो कितने किस्म के विवाद जन्म लेते हैं… कितनी अफ़वाहें उड़ती हैं… कितनी दुश्मनियां पैदा होती हैं। यहां तो कोई थियेटर की स्टेज या सिनेमा का सैट नहीं होता है… सीधा-सीधा जीवन होता है और उस जीवन में करनी होती है जीवंत अदाकारी। एक्टर अपना जीवन तो जी ही नहीं सकता, वह निरंतर एक्टिंग करने के लिये अभिशप्त है।

हम इन्सानी रिश्तों के बारे में जितना कुछ जानते हैं, इससे एक बात तो साफ़ ज़ाहिर है कि जापानी समाज के लिये यह स्थिति ख़ासी कष्टदायक है। मगर इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि ऐसे कठिन हालात में इन्सानी भावना को जीवित रखने के लिये यही एक ठीक रास्ता है। आजतक किसी प्रकार का अध्ययन नहीं किया गया है ऐसे रिश्तों का इन्सानी सोच और फ़ितरत पर क्या असर हो सकता है। मगर एक बात तो सच है कि यदि ऐसे किराये के परिवार इन्सानी अकेलेपन का इलाज साबित हो सकते हैं तो इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।

लेखक—तेजेन्द्र शर्मा, लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक