नए भारत के ग्लोबल इंडिया के ये वे द्वंद्व है, क्या

राम से जय श्रीराम तक के राम

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17,जनवरी 2024, (अपडेटेड 17,जनवरी 2024 12:39 AM IST)

नई दिल्ली: राम का अतीत इतना व्यापक और विस्तारित है कि उस पर समझ और संज्ञान की सीमाएं है। उन्हें  चिन्हित  करना  बहुत  दूर  की  कोड़ी  है।  भारतीय  समाज  में  राम  उस  वट-वृक्ष  की  तरह  है जिसकी छत्रछाया में भक्त, आलोचक, आम, खास, आराधक, विरोधक, सम्बोधक सबके सब न जाने कितने सालो से एक साथ चले आ रहे है। ‘राम’ भारतीय चिंतन परंपरा का सबसे चहेता चेहरा है। उनमें  निर्गुणों  का,  सगुणों  का  सबका  समान  हिस्सा  है।  ब्रह्मवादी  उनमें  ब्रह्म  स्वरुप  में  देखते  है। निर्गुणवादीयों के लिए आत्मा ही राम है। अवतारवादियों के वे अवतार है। वैदिक साहित्य में उनका विचित्र रूप है। बौद्ध कथाएं उनके करुणा रूप से कसी हुई है। बाल्मीकि के राम कितने निरपेक्ष है देखते ही बनता है। तुलसी के राम भारतीय जनमानस में बसे राम है, यहां सबके घट-घट में सजे राम है। राम ही है जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एक सूत्र में पिरोए हुए है। भारतीय समाज के लिए तो सम्मान का सम्बोधन ही ’राम-राम’   हो जाता है। यह अकारण नहीं है जो सब कुछ राममय हो गया है। यहां हर घर का बड़ा बेटा राम हो जाता है जो आज्ञाकारी है,  त्यागी  है,  सेवाभाव  वाला  है।  आदर्श  शासक  सबको  राम  सरीखा  नजर  आता  है।  यहां  तक  कि रामराज्य आदर्श व्यवस्थाओं के आग्रह का आवशयक आधार बन जाता है।

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राम भारतीय परम्परा का अभिन्न हिस्सा है। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और बाल्मीकी के राम  मानवीय  भावनाओं  से  ओत-प्रोत  संतुलित  राम  हैं।  मर्यादा  पुरुषोत्तम  राम  ने  अपने  जीवन  में एक-एक मर्यादा की पालना की, समाज के सम्मुख आदर्श रखें। पुत्र, पिता, भाई, पति, राजा, मित्र तमाम  स्वरूपों  में  मानवीय  भावनाओं  के  संतुलक  राम  सिर्फ  भारत  के  ही  आदर्श  नहीं  है  बल्कि  पूरे विश्व के लिए आदर्श रूप में अनुकरणीय है। भगवान राम का जीवन आम जीवन से जुड़ा जीवन है, वह चमत्कृत नहीं सबको आकर्षित करता है। पत्नी के अपहरण पर भी समाज से सहयोग मांगा और संघर्ष किया। तो उसे वापस पाने के लिए मिल बैठकर नीति बनाई। लंका जाने के लिए एक-एक पत्थर  जोड़कर  पुल  बनाया।  एक  कुशल  प्रबन्धक  की  तरह  लौटे  तो  पूरी  सेना  के  साथ  लौटे,  एक साम्राज्य निर्माण की आकांक्षा से लबरजे    रामराज की कामना के साथ। राम अगम है सगुण हैं निर्गुण है। कहत कबीरं “निर्गुण राम जपहुं रे भाई।”

 height= राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा है, त्याग है, प्रेम है और लोकव्यवहार का साक्षातकार हैं। राम  मानवता  में  मथे  महापुरुष  है।  राम  लोकतंत्र  के  लोकपाल  है,  सबके  प्रेरक  है  और  समाज  के सह-निर्माता है। राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव तभी संभव हो भी पाया। राम से भारतीय समाज सदैव सार्थकता पाता रहा है। भारत का आम जन-जीवन युगों-युगों से राम के şष्टिकोण  के  साथ  जीवन  के  संदर्भोंं-स्थितियों-परिस्थितियों-मनःस्थितियों-घटनाओं-प्रतिघटनाओं और  प्रघटनाओं  को  मूल्यांकित  करता  रहा  है।  राम  भारतीय  समाज  की  वैचारिक  थाती  है।  राम भारतीय संस्कृति की सतत प्रवाहमान धारा हैं। उनके उग्र स्वरूप के चित्रण में वैसा प्रभाव नहीं है, जैसा  उनकी  सौम्यता  में  समाया  हुआ  है।  राम  बहुत  सहज,  सौम्य  और  सम्मोहक  है।  इसलिए  वह सर्वत्र है, सबके है और सब उनके है। रहीम खान-ए-खाना कहते है कि ’रामचरित मानस हिन्दुओं के  लिए  ही  नहीं  मुसलमानों  के  लिए  भी  आदर्श  है।’  तभी  उन्होने  लिखा  ’रामचरित  मानस  विमल, संतन जीवन प्रान, हिन्दुअन को वेद सम, तुरकहिं प्रगट कुरान।’

 height= राम किसी धर्म, देश, दुनियां की सीमाओं में सीमित नहीं है वह एक विलक्षण विचार हैं। साहित्य में खुसरो,  रसखान,  आलम  रसलीन,  हमीदुद्दीन  नागौरी,  ख्वाजा  मोइनुद्दीन  चिश्ती  सबने  राम  की काव्य-पूजा की तो किसी ने राम की शक्ति पूजा की है। तुलसी, कबीर, नानक और रैदास सब राम में रमे रहे। तुलसी कहत ‘राम न सकहिं नाम गुन गाहीं।‘ अर्थात स्वयं ‘राम’ भी इतने समर्थ नहीं हैं कि वह अपने ही नाम के प्रभाव का गान कर सकें। कबीर कहते है ’राम गुण न्यारो न्यारो। अबुझा लोग कहांलौं बूझै, बूझनहार विचारो।‘ राम के गुण बेहद न्यारे हैं। नासमझ लोग उन्हें रटते रहते हैं, कोई समझने की कोशिश ही नहीं करता। गांधी के राम ‘रघुपति राघव राजा राम’ जब 22 जनवरी, 1921 को आज से लगभग एक सदी पूर्व ‘यंग इंडिया’ में उन्होंने लिखा, ‘मेरे लिए राम, अल्लाह और गॉड सब एक ही हैं।’ इसी चिंतनधारा में संत विनोबा भावे  जी राम, कृष्ण, बुद्ध को अवतार घोषित किए जाने के प्रश्न पर कहते है ‘दरअसल विचार का ही अवतार होता है। लोग समझते हैं कि राम, कृष्ण,  बुद्ध,  अवतार  थे।  हमने  उन्हें  अवतार  बनाया  है।  अवतार  व्यक्ति  का  नहीं  विचार  का  होता  है और विचार के वाहन के तौर पर मनुष्य काम करते हैं।  युगानुकूल वैचारिकी खड़ी करते है। किसी युग में राम के रूप में सत्य की महिमा प्रकट हुई तो किसी में कृष्ण के रूप में प्रेम की, तो कभी बुद्ध के  रूप  में  करुणा  की।’  भारत  की  हर  एक  भाषा  में  रामकथाएं  कही  गई  हैं।  भारत  के  बाहर फिलीपाईन्स,  थाईलैंड,  लाओस,  मंगोलिया,  साईबीरिया,  मलेशिया, म्यांमार,  स्याम,  इंडोनेशिया,  जावा, सुमात्रा,  कम्बोडिया,  चीन,  कपान,  श्रीलंका,  वियतनाम  सभी  में  रामकथा  के  ढेरों  स्वरुप  मौजूद  है। इससे  स्पष्ट  है  कि  यदि  राम  केवल  राजा  होते,  न्यायी  होते,  सदाचारी  होते,  धर्म  प्रवर्तक  होते तो शायद उनकी स्मृति भी  कब की  क्षीण हो  चुकी होती और वह इतिहास  बनकर  रह गए होते। राम इतिहास नहीं हैं वह तो हर पल नए निवर्तमान हैं। अपना कोई धर्म-पंथ न चलाते हुए भी धर्म का आदि और अंत हैं। स्थूल रूप में अपने समय में नर-लीला करते हुए भी अतीत नहीं हुए वर्तमान हैं।

 height= मौजूदा  दौर  का  सवाल  थोड़ा  दुरुह  है।  क्या  यह  राम  विचार  का  विश्राम  है।  जब  राजनीति  के राम जय श्रीराम है। 21वीं सदी की वैचारिक विमाओं में राम की भूमिका राष्टृ निर्माण के किस रुप में अवतरित हो? आज यह यक्ष प्रश्न भारतीय चित्त की बड़ी चुनौती है। मौजूदा भारतीय नेतृत्व को नए राष्टृ संगठक राम की तलाश है। राम की प्रतिष्ठा राजनीति से ज्यादा राष्टृनीति में निहित है। गंभीर सवाल  यही  है  कि  नई  पीढ़ी  के  लिए  राम  कैसे  हो?  नयी  सदी  के  नए  दिमागों  में  राम  की  नयी उपमाएं कैसे उगे? मौजूदा चुनौतियों को मानस मंथन की नयी व्याख्याएं  कैसे हल करे। जब  विश्व मानवता और विज्ञान के विकास का क्रम  इतना सहज न रहा हो? क्या नई पीढ़ी का वाल्मिकि के ‘राम’  से  काम  चल  जायेगा?  या  तुलसी,  कबीर  और  रसखान  के  ‘राम’  से  सब  काम  बन  जायेगा। आजाद भारत में गांधी,  निराला  और  रामानंद सहित भारतीय राजनीति  ‘राम’ को कितना भारतीयता के निकट ला पाती है। युवा पीढ़ी की आधुनिकता को कितना राम समर्थित बना पाती है। आधुनिक राम  और  आध्यात्मिक  राम  में  संतुलन  साधने  का  उद्यम  तो  नई  पीढ़ी  के  लिए  आज  नही  ंतो  कल करना ही होगा। जो जय श्रीराम के जयकारे से आगे बढ़कर हर दिल के हलकारे तक राम के रंग बिखेर सके। देश का हर जवान उमंगित हो उठे, झूम उठे, गा उठे ’’होली खेले रघुवीरा, अवध में....’’

 height= नए भारत के ग्लोबल इंडिया के ये वे द्वंद्व है जो नए मुहावरों में राम को रमना चाहते है। क्या नयी सदी का भूमंडलीय भारत नयी नैतिकताओं और नयी सामूहिकताओं की नयी सामाजिक संहिता की सैद्धांतिकी के साथ नए राम की रचना करने वाले नए नरेशन को राजनीति के बाहर विस्तारित कर पायेगा। यहीं वह सबसे मौजूं सवाल है जिसके जवाब में राम युगो-युगों तक भारत के भीतर प्राण संचार करने वाले जन-नायक रहे है। राम का जीवन चरित्र संघर्ष में भी धीरज देता है। घोर नैराश्य  में  भी  साहस  और  संयम  सिखाता  है।  राम  एक  आदर्श  व्यक्तित्व  के  पूरक  हैं।  राम  का  पूरा जीवन ही संघर्षों और आदर्शों से लबालब है। राम एक आदर्श पुत्र, पति या भाई ही नहीं है भारतीय समाज  के  लिए  मर्यादा  है।  विनय  और  विवेक  के  विनायक  है।  लोकतांत्रिक  मूल्यों  और  संयम  के संवाहक राम है। एक मर्यादित, संयमित और संस्कारित जीवन की जीवंत झांकी है मर्यादा पुरुषोत्तम राम। राम का राज्य जन सेवा के लिए नीतिकुशल न्यायप्रिय राजा का हैं। पारिवारिक मूल्यों के लिए निष्ठावान  पीढ़ी  के  संस्कार  वाला  जीवन  राम  का  है।  वैवाहिक  आदर्शता  की  पराकाष्ठा  को  परोसते राम ने पिता के तीन विवाहों के वातावरण में भी सीता सी सती के लिए वियोगी जीवन संधर्ष जारी रखा। यह राम ही कर सकते है।

 height= राम का यह पारिवारिक व्यवहारिक जीवन-दर्शन भारतीय समाज की रग-रग में रमता है। उनके आदर्श  उत्तर  से  दक्षिण  तक  सम्पूर्ण  भारतवर्ष  के  जनमानस  में  जमें  हुए  है।  राम  का  तेजस्वी  और पराक्रमी स्वरूप भारत राष्टृ को रक्षित रखता है। असीम क्षमता और अपार शक्ति वाले राम संयमित और  मर्यादित  जीवन  जीते  हैं।  सामाजिक,  पारिवारिक,  लोकतांत्रिक  और  आध्यात्मिक  आहवाहन  के साथ लोक  कल्याण में रत राम  मानवीय करुणा  वाले कर्मवीर  हैं। तभी तो मानते हैं-परहित सरिस धर्म नहीं भाई। राममनोहर लोहिया कहते हैं गांधी ने भारत को संबोधित करने के लिए राम का ही साहरा लिया, यह अकारण नहीं है दरअसल राम इस राष्टृ की एकता के प्रवर्तक हैं। गांधी ने राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित तस्वीर रखी। क्योकि गांधी के राम राज्य की परिकल्पना में लोकहित  सर्वोपरि  है।  भारत  की  हर  नई  पीढ़ी  राम  और  रहीम  की  साझी  परम्पराओं  के  सामाजिक, ऐतिहासिक,  आध्यात्मिक  और  वैज्ञानिक  संदर्भ  समझती  आयी  है।  राम  की  यह  थाती  हमारी  अमूल्य निधि  है  और  असली  ताकत  भी।  हमारी  सामाजिक-राजनीतिक  परम्पराओं  के  समावेशी  चरित्र  को बनाने में राम की अद्वितीय भूमिका है। राम भारत के जन-जीवन में समाएं हुए सर्वग्राही नायक है। हिन्दू राम को अपनी उस आध्यात्मिक शक्ति का प्रकाश पुंज मानते है जिसके सहारे वह हर क्षेत्र में रामराज्य की स्थापना के व्यवहारिक और अभिनव प्रयोग करते दिखते है। हर भारतवासी की राम में अगाध श्रद्धा है। राम भारतीय जीवन को शुरु से अंत तक अजस्र शक्ति स्रोत के रुप में उर्जित रखते है।  राम उस  उर्जा स्रोत की तरह भारतीय अस्तित्व मे समाये हुए है  जो इस समाज को बार-बार संभालता है  और लोक  कल्याण  की दिशा  में  प्रेरित रखता है।  यहां हर घर में राम  रमण करते है, घट-घट में राम बसते है।  

लेखक डॉ0 राकेश राणा समाजशास्त्री है