‘‘नीट’’… ‘‘नीट’’ ना रहा…!
लंदन: ऐसा बहुधा होता है कि हम किसी विषय पर टीवी चैनलों में शोर सुनते रहते हैं; राजनीतिज्ञों के गला-फाड़ वक्तव्य सुनते हैं; समाचारपत्रों में लंबे-लंबे लेख पढ़ते हैं मगर मन ही मन सोच रहे होते हैं कि आखिर माजरा क्या है।
दरअसल जबतक भारत में ‘‘नीट’’ पर विवाद खड़ा नहीं हुआ था, तो मेरे जैसे विदेश में रहने वाले प्रवासियों को ‘‘नीट’’ का एक ही अर्थ मालूम था (NEET = Not Engaged in Education, Employment or Training) यानी कि वो युवा जो किसी प्रकार के पढ़ाई, नौकरी या प्रशिक्षण से नहीं जुड़े हैं। मगर जब भारत में शोर मच गया कि ‘‘नीट’’ में पेपर लीक हुए हैं, तो मैं सोच में पड़ गया कि ‘‘नीट’’ से भला पेपरों का क्या लेना देना है!
बहुत से पुरवाई पाठकों का संदेश भी आया, “तेजेन्द्र जी, आप ‘नीट’ पर लिखिये!” मैं हैरान और परेशान की जब मुझे इस संक्षिप्ताक्षर का अर्थ ही नहीं समझ में आ रहा तो इसपर कुछ लिखूं भी तो कैसे। एअर इंडिया के दिनों में कुछ लोग नीट पिया करते थे… यह तो स्मृति में है।
फिर मुझे याद आया कि आप सबने तो मेरे सुपुर्द एक ख़ास काम दे रखा है कि मैं सप्ताह भर शोध करूं और कोई न कोई नया विषय आप सबके सामने रखूं। तो मुझे यही बेहतर लगा कि मुझे ‘नीट’ का जो अर्थ मालूम है, उसे पूरी तरह से भुला दूं और भारतीय संदर्भ में इस संक्षिप्ताक्षर का जो अर्थ बनता है उसे समझूं; आपको समझाऊं और वास्तिवक समस्या क्या है उस पर एक गहरी नज़र डाली जाए।
चलिए, तो पुरवाई के पाठकों को भारतीय ‘नीट’ का अर्थ बताते चलें। भारत में ‘नीट’ कहते हैं नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (National Eligibility cum Entrance Test- NEET) को। इसका हिन्दी अर्थ आसानी से समझ आने वाला नहीं है… हिन्दी में इसे कहा जाता है – “राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा”। एक ज़माने में यह हर राज्य द्वारा अलग-अलग आयोजित किया जाता था। वर्ष 2013 में मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने देश भर में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिये परीक्षा का मानकीकरण कर दिया और उसके बाद से राष्ट्रीय स्तर पर यह परीक्षा आयोजित होने लगी।
इस परीक्षा का आयोजन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी कि NTA करती है। यह परीक्षा साल में दो बार होती है। इस परीक्षा के माध्यम से एम.बी.बी.एस., बी.डी.एस., आयुष और बी.वी.एस.सी. और ए.एच. सीटों पर प्रवेश के लिए परीक्षा के लिए चयन किया जाता है। यह केवल एम.बी.बी.एस. में प्रवेश करने की परीक्षा तक सीमित नहीं है। पहले इन परीक्षाओं में राज्य स्तर पर गड़बड़ियां होती थीं। शायद इसीलिये उनकी इतनी चर्चा नहीं हो पाती थी। अब भी गड़बड़ी उन्हीं राज्यों में हो रही है मगर अब क्योंकि परीक्षा राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है, इसलिये मुद्दा भी राष्ट्रीय बन गया है।
आमतौर पर ‘नीट’ की परीक्षा में 200 प्रश्न पूछे जाते हैं और परीक्षार्थियों को केवल 180 प्रश्नों का उत्तर देना होता है। ऑब्जेक्टिव टाइप का पेपर होता है जिसमें मल्टीपल चॉयस की सुविधा होती है। अंग्रेजी, हिंदी, असमिया, बंगाली, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु, उड़िया, कन्नड़, पंजाबी, मलयालम और उर्दू भाषाओं में ‘‘नीट’’ की परीक्षा दी जा सकती है। प्रत्येक सही उत्तर के लिये 4 अंक दिये जाते हैं। ग़लत उत्तर के लिये एक अंक काट लिया जाता है और जिन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया जाता उस पर कोई अंक नहीं दिया या काटा जाता। ‘नीट’ परीक्षा में बैठने की न्यूतम आयु सीमा 17 वर्ष है मगर इसके लिये कोई उच्चतम सीमा तय नहीं की गई है क्योंकि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का एक फ़ैसला दिया जा चुका है।
पिछले सप्ताह ही हमने जिस विषय पर नज़र डाली थी यानी कि ‘किस्तों में रिश्वत’ उसका भी कुछ किरदार तो यहां भी दिखाई देगा ही। पैसे का लेनदेन तो इस प्रक्रिया में हुआ ही होगा। जिन बच्चों के माता-पिता किसी भी कीमत पर अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना ही चाहते हैं वे पंद्रह बीस लाख रुपये पेपर लीक करवाने के लिये इन्वेस्ट करने में झिझक महसूस नहीं करते। हमने पिछले संपादकीय में भी कहा था कि हम अपने आपको नहीं बदल सकते मगर चाहते हैं कि सरकार हालात बदल दे। इस विवाद की जड़ में वे माता-पिता हैं जो किसी भी कीमत पर अपने बच्चे को डॉक्टर बना देखना चाहते हैं। इसके लिये वे स्कूल कॉलेज के अध्यापकों/प्राध्यापकों; नेट के अधिकारियों; राजनीतिज्ञों; और प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारियों को किसी भी हद तक भ्रष्ट करने को तैयार हैं।
NTA यानी कि नेशनल टेस्ट एजेन्सी का गठन 2017 में हुआ था और वर्ष 2018 से यह सक्रिय हुई। यानी कि कुल मिला कर छः सात साल का ही मामला है। और इस बीच इस परीक्षा करवाने वाली एजेन्सी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट और देश के 25 में से 22 उच्च न्यायालयों में कुल मिला कर 1100 केस दर्ज किये गये हैं। बात तो सोचने लायक है कि क्या वर्तमान सरकार ने पूरे सरकारी तंत्र में से सबसे अधिक भ्रष्ट अधिकारियों को इस विभाग में नियुक्त किया। वरना जिस सरकार का प्रधानमंत्री इतनी कठोर छवि के व्यक्ति हों उनके शिक्षा मंत्री की नाक के नीचे इतना भ्रष्टाचार कैसे पनप सकता है!
यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि वर्ष 2018 में नेशनल टेस्ट एजेन्सी के विरुद्ध केवल 6 मामले दर्ज हुए थे जो कि सुरसा के मुंह की तरह फैलते चले गये। 2019 में 125; 2020 में 137; 2021 में 191; 2022 में सबसे अधिक 317; 2023 में 185 और अभी 2024 की पहली छमाही में 139 मामले दर्ज हो चुके हैं।
हालांकि पता चला है कि दायर किये गए 1,100 मामलों में से 870 का निपटारा कर दिया गया है; जबकि 230 मामले अभी भी लंबित हैं… इसका मतलब है कि निपटान की औसत दर लगभग 70% है… पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर 89 प्रतिशत मामलों को सुलझा दिया गया है, यहां 62 में से 55 मामलों का निपटारा किया जा चुका है।
इस बीच पेपर लीक का मुद्दा एक राष्ट्रीय मुद्दा बन कर उभरा है। झारखण्ड, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र से सीबीआई ने भी कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। ग़ौरतलब बात यह है कि ‘नीट’ विवाद की जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई ने बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र से कई आरोपियों को गिरफ्तार किया है। साथ ही सीबीआई पेपर लीक के सबूत भी इकट्ठा कर रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर वर्तमान हालात में कोई शख्स मेरिट लिस्ट में रैंक बढ़वाने का आश्वासन कैसे दो सकता है? पश्चिम बंगाल से ऐसा समाचार मिल रहा है। कहीं इसके लिंक बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र से जुड़े तो नहीं हैं? इसका पता तो जांच के बाद ही लग पाएगा।
एक नाम जो सबसे अधिक चर्चा में है उसका नाम है संजीव मुखिया उर्फ़ लुट्टन। पेपर लीक मामले में बिहार पुलिस संजीव कुमार उर्फ संजीव मुखिया उर्फ लुटन की तलाश कर रही है। संजीव मुखिया पेपर लीक गिरोह को नालंदा से ही ऑपरेट किया करता था… वह नालंदा उद्यान महाविद्यालय में टेक्निकल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत था।
महाविद्यालय के अधीक्षक से जब संजीव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि संजीव कई सालों से यहां काम कर रहा है। जब टीवी पर पेपर लीक की खबरे आईं और उन्होंने उसमें संजीव की फोटो और नाम देखा तो सभी चौंक गए कि अरे ये तो हमारे साथ ही काम करता है। अधीक्षक ने कहा कि संजीव को देखकर कभी ऐसा नहीं लगा कि वह इतने बड़े नेटवर्क को चला रहा है। ध्यान देने लायक बात यह है कि ‘नीट’ पेपर लीक की परीक्षा 5 मई को आयोजित हुई थी और आरोपी संजीव 4 मई को आखिरी बार कॉलेज आया था। इसके बाद उसने अचानक कॉलेज आना बंद कर दिया।
इस बीच संजीव मुखिया की पत्नी ममता देवी के फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जिनमें वे बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार, अन्य मंत्रियों और प्रशांत किशोर के साथ दिखाई दे रही हैं। आरोप तेजस्वी यादव पर भी लग रहे हैं और माँग यह भी की जा रही है कि शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को नैतिक आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिये।
मामले की गंभीरता से कोई इन्कार नहीं कर रहा। भारत के लाखों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। मगर क्या सत्ता पक्ष और विपक्ष संसद में इस मामले को लेकर ज़रा भी गंभीरता से व्यवहार कर रहे हैं। शुक्रवार को लोकसभा में वही पुराना दृश्य दोहराया जा रहा था। राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना था कि परंपरा को ताक पर सबसे पहले ‘नीट’ पेपर-लीक पर चर्चा करवाई जाए। वही चेहरे सत्ता पक्ष के दिखाई दे रहे थे, वही लोकसभा अध्यक्ष और उनका बार-बार कहना, “माननीय सदस्य… !” और सदस्यों का माननीय जैसा व्यवहार ना करते हुए नारेबाज़ी और हुल्लड़ कर रहे थे।
‘पुरवाई’ का संदेश भारत की संसद के नाम। भारतीय विपक्ष एक बार हमारा कहना मान कर लोकसभा के स्पीकर कहने पर राष्ट्रपति अभिभाषण पर बहस करना शुरू कर ले। अभिभाषण में जैसे ही ‘नीट’ का मुद्दा आए, वहां सरकार को जकड़ ले कि इस मुद्दे पर पूरी बहस होना ज़रूरी है। सत्ता पक्ष भी उस समय किसी बहानेबाज़ी से बचे। इस तरह परंपरा का निर्वाह भी हो जाएगा। ‘नीट’ पर गंभीरता से बात भी हो जाएगी। और आयकर देने वाला आम आदमी इस बात से संतुष्ट भी हो पाएगा कि उसके टैक्स पर संसद सदस्य मौज नहीं मना रहे बल्कि कुछ सकारात्मक काम कर रहे हैं।
लेखक लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं.