देश में दुत्कार… दूर-देश में प्यार…!
लंदन: हज़रत इब्राहिम को तीन धर्मों का जनक माना जाता है – यहूदी, ईसाई एवं इस्लाम। वहीं, ईसाई एवं इस्लाम धर्म-परिवर्तन में गहरा विश्वास करते हैं और इसी माध्यम से इन दो धर्मों ने अपनी संख्या में बढ़ोतरी की है, यहूदी धर्म इस मामले में अलग सोच रखता है। यहूदी अन्य मज़हब के लोगों को धर्म परिवर्तन करके अपने मज़हब से नहीं जोड़ते हैं। कुछ इसी ही तरह हिन्दू धर्म भी दूसरे धर्म के लोगों धर्म-परिवर्तन करवा के हिन्दू बनाने में विश्वास नहीं रखता था।
हाँ स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से शुद्धि का तरीका ज़रूर ईजाद किया कि यदि कोई व्यक्ति हिन्दू धर्म छोड़ कर किसी अन्य धर्म को अपना लेता है और अगर वह अपने नये धर्म से ख़ुश नहीं है तो उस व्यक्ति को शुद्धि करवा के दोबारा हिन्दू बनाया जा सकता है।
भारत में, जब से विपक्षी दलों ने अपना गठबंधन बनाया है, सनातन धर्म और हिन्दू ग्रन्थ उनकी आलोचना का शिकार हो रहे हैं। कभी तमिलनाडु से निंदा का बाण छोड़ा जाता है तो कभी मौर्य वंशज उत्तर प्रदेश से गोस्वामी तुलसीदास और उनके महान ग्रन्थ रामचरित मानस पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। बिहार और बंगाल भी पीछे रहने को तैयार नहीं हैं। बस एक ही शर्त है कि गरियाना हिन्दुओं को है तो गरियाने के एक्स्पर्ट आपको तत्काल मिल जाएंगे।
राम मंदिर के निर्माण और उसकी प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जो विवाद खड़े हुए हैं वे अलग देश में तनाव उत्पन्न कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि शुभ मुहूरत केवल 84 सेकण्ड तक रहने वाला है – 12 बज कर 29 मिनट और आठ सेकण्ड 12 बज कर तीस मिनट बत्तीस सेकण्ड के बीच। इसी बीच प्राण प्रतिष्ठा होना आवश्यक है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, त्रिणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और कुछ शंकराचार्य भी भगवान राम को भारतीय जनता पार्टी का कैदी मान कर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने से इन्कार कर रहे हैं। मैं वामपंथी दलों का नाम इसलिये नहीं ले रहा क्योंकि अब भारतीय राजनीति में उनका कोई महत्व बचा नहीं है।
जब भारत में यह सब हो रहा है तो यह जान कर हैरानी सी होती है कि हिन्दू धर्म का सूर्य अफ़्रीकी देशों में उदय होता दिखाई दे रहा है। विश्व के एकमात्र देश नेपाल में हिन्दू धर्म ख़तरे में दिखाई देने लगा है और अफ़्रीका के देश घाना में वहां के लोकल अश्वेत लोग धर्म परिवर्तन करके हिन्दू धर्म को अपना रहे हैं। इस पुण्य कार्य की शुरूआत स्वामी घनानन्द ने वहां हिन्दू मठ स्थापित करके की।
स्वामी घनानन्द घाना, अफ़्रीका में हिन्दू मठ के प्रणेता हैं। वे मूल अफ्रीकी हैं। उन्हें 1975 में भारत के स्वर्गीय स्वामी कृष्णानंद द्वारा स्वामी के रूप में दीक्षित किया गया था, और आकरा, घाना में अफ्रीका के हिंदू मठ के प्रमुख थे। स्वामी कृष्णानंद सरस्वती (25 अप्रैल 1922 – 23 नवंबर 2001) शिवानंद सरस्वती के शिष्य थे और 1958 से 2001 तक ऋषिकेश, भारत में डिवाइन लाइफ सोसाइटी के महासचिव के रूप में कार्य किया। 40 से अधिक ग्रंथों के लेखक, और व्यापक रूप से व्याख्यान, योग, धर्म और तत्वमीमांसा, कृष्णानंद एक विपुल धर्मशास्त्री, संत, योगी और दार्शनिक थे।
स्वामी घनानन्द स्वयं एक ईसाई माता-पिता की संतान थे। बीबीसी से एक वार्ता में उन्होंने कहा था कि वे “बहुत कम उम्र से ही मैं ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे में सोचते थे और धार्मिक ग्रंथों में उत्तर खोजने की कोशिश करता थे। लेकिन मैं असफल रहे।” अंततः उन्हें हिन्दू धर्म में बहुत से सवालों के उत्तर मिले। उनकी खोज उन्हें एक यात्रा पर ले गई जो उन्हें भारत के उत्तराखंड में ऋषिकेश और अंत में आकरा में मठ में ले गई। उनका कहना है कि ऋषिकेश में उनके गुरु ने उन्हें आकरा में मठ खोलने के लिए प्रेरित किया था।
स्वामी घनानन्द ने यह स्पष्ट किया कि उनका लक्ष्य लोगों को हिंदू धर्म में परिवर्तित करना नहीं था, बल्कि केवल सत्य की खोज करने वालों की सहायता करना था। मठ में इस्लाम सहित सभी धर्मों में जन्मे लोग एक साथ आते हैं। अपनी आस्था के कारण उन्हें स्वयं स्थानीय वर्गों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन मठ में आने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। वर्ष 2020 में किये गये एक शोध के अनुसार 2050 तक विश्व में हिन्दू धर्म को मानने वालों की आबादी कुल आबादी का करीब 15 प्रतिशत होगी। अकेले भारत में ही हिन्दुओं की आबादी सवा अरब से कहीं अधिक होगी। वर्तमान में भी भारत में यह प्रतिशत के हिसाब से 79 प्रतिशत से अधिक है।
आबादी के हिसाब से नेपाल दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जिसमें हिन्दू बहुसंख्यक हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समय वहां 3.8 करोड़ से अधिक हिन्दू रह रहे हैं। 2006 में नेपाल को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया गया था मगर राजनीतिक कारणों से धर्म परिवर्तन के बहुत से मामले सामने आए हैं और नेपाल को भी भारत की तर्ज़ पर सेक्युलर देश में परिवर्तित कर दिया गया है।
इस घटना से एक सवाल मन में अवश्य उठता है कि किसी भी अन्य धर्म का पालन करने वाला अपने आप में कोई हीन भावना महसूस नहीं करता। ईसाई, मुसलमान, सिख, बौद्ध, पारसी सभी सहज ढंग से अपना धर्मा बताते हैं और उन्हें अपने-अपने पूजा स्थल पर जाने में कोई झिझक महसूस नहीं होती। वे कभी नहीं कहते कि धर्म निजी मामला है और अपने धर्म का सार्वजनिक प्रदर्शन में कोई अड़चन महसूस नहीं करते। यह समस्या केवल हिन्दुओं में ही पाई जाती है।
आबादी के हिसाब से तीसरे, चौथे और पाँचवें देश हैं – बांग्लादेश, पाकिस्तान और अमरीका कहे जाते हैं। यह भी देखा जा रहा है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या कम हो रही है तो अमरीका में संख्या बढ़ रही है। 2050 तक अमरीका में 4.78 करोड़ हिन्दू होंगे।
ऐसे में घाना की राजधानी आकरा में अश्वेत लोगों के हिन्दू धर्म अपनाने पर एक सकारात्मक सी भावना तो महसूस होती ही है। वहां स्वामी घनानंद के अतिरिक्त इस्कॉन (हरे कृष्ण) समुदाय भी सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। आकरा में ही पाँच हिन्दू मंदिरों का निर्माण हो चुका है। इन मंदिरों की अदभुत बात ये है कि यहाँ शिव-पार्वती, गणेश, काली, राम और कृष्ण के साथ-साथ ईसा मसीह की तस्वीर भी रखी हुई है।
पूछने पर स्वामी घनानंद इसका दार्शनिक जवाब देते हैं, “हिंदू देवी देवताओं के साथ ईसा मसीह और मरियम की तस्वीर रखने में बुराई क्या है? समुद्र में जाओ तो वहाँ रेखाएँ खिंची नहीं मिलतीं। ये इंसानों ने ही बनाए हैं अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर. ठीक वैसे ही ईश्वर एक है पर हम उसे अलग-अलग रूपों में पूजते हैं.” वैसे यह भी सच है कि ऐसी विशाल हृदय सोच एक हिन्दू ही रख सकता है।
आज के हालात हैरान करने वाले हैं। भारत में हिन्दू धर्म वायरस कहलाता है, बीमारी कहलाता है और हिन्दू होना गंदी बात बन जाती है। वहीं दूर देशों में जूलिया रॉबर्ट्स से लेकर स्वामी घनानन्द तक हिन्दू धर्म को अपना रहे हैं। लंदन और उसके आसपास के इलाकों में श्वेत यूरोपीय लोग भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन होकर नृत्य करते दिखाई देते हैं। शायद वो दिन दूर नहीं जब भारत से लोग आकरा नाम के एक नये धाम पर तीर्थयात्रा के लिये निकला करेंगे।
लेखक लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं.