प्रवासी हिंसा और दंगे
लंदन: अंग्रेज़ी का एक शब्द है गैटो (Ghetto) जो किसी ज़माने में यहूदियों के लिये प्रयोग में लाया जाता था। दरअसल यहूदियों को शहर के किसी ऐसे इलाके में रहने को मजबूर कर दिया जाता था जहां केवल यहूदी ही रहते थे और वो शहर का सबसे कम विकास वाला क्षेत्र होता। इसमें यहूदियों की इच्छा का ख़्याल नहीं रखा जाता था। उन्हें मजबूरी वहां रहना पड़ता था।
समय के साथ-साथ इस शब्द का अर्थ बदलता चला गया। अब इसे अल्पसंख्यकों का अविकसित मोहल्ला भी कहने लगे हैं और विदेशों में वो इलाका जहां एक प्रकार या देश के प्रवासी एक समूह के तौर पर रहते हैं। ये गैटो इन प्रवासियों ने स्वयं अपनी मर्ज़ी से बनाए हैं, इन पर किसी प्रकार का राजनीतिक या सामाजिक दबाव नहीं होता। बस ये प्रवासी अपने साथ कुछ रीति-रिवाज, सामाजिक सोच और पहनावा ले कर आते हैं और अपने अपनाए हुए देश के लोगों और कल्चर के साथ जुड़ना नहीं चाहते।
ब्रिटेन में ऐसे बहुत से इलाक़े हैं जिनमें एक ख़ास किस्म के प्रवासी एक समूह की तरह रहते हैं और अपने रीति-रिवाजों के साथ वहां जीते हैं। ये सभी प्रवासी ब्रिटेन में आर्थिक कारणों से ही बसने के लिये आए हैं। इनमें से बहुतों ने राजनीतिक शरण ले रखी है; वे ब्रिटेन की सोशल सेवाओं का पूरा लाभ उठाते हैं। मगर वे ब्रिटेन की मुख्यधारा में शामिल होने का प्रयास नहीं करते। ब्रिटेन में प्रवासी के रूप में बसने के लिये वे सिर के बल भी खड़े होने को तैयार हैं मगर एक बार अनुमति मिल जाने के बाद उनका एक ही उद्देश्य दिखाई देता है – ब्रिटेन को अपने मज़हब और कल्चर के हिसाब से बदल लेना।
आप सोच रहे होंगे कि आख़िर मैं आपको ये सब क्यों बता रहा हूं। शायद आपने पिछले दिनों ब्रिटेन के शहर लीड्स के हेयरहिल्स इलाके में हुई हिंसा और दंगों का ज़िक्र टीवी और समाचारपत्रों में देखा होगा। ब्रिटेन और युरोप कुछ समय से प्रवासी हिंसा का शिकार हो रहे हैं। कुछ दशकों से ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, स्वीडन, नीदरलैंड जैसे देशों में बड़ी संख्या में प्रवासियों को शरणार्थी के रूप में बसाया जा रहा है। उन्हें तमाम सुविधाएं मुहैय्या करवाई जा रही हैं। मगर इन तमाम देशों में 9/11 के बाद से हिंसा और दंगे आम बात हो गई है।
आम तौर पर ये दंगे सांप्रदायिक कारणों से आयोजित किये जाते रहे हैं। हिंसा किसी कार्टून को लेकर भी शुरू हो जाती है और कभी इज़राइल और फ़िलिस्तीन को लेकर… और तो और क्रिकेट में पाकिस्तान पर भारत की जीत पर भी सांप्रदायिक दंगे शुरू हो जाते हैं। ब्रिटेन में लेस्टर, बर्मिंघम, पूर्वी लंदन और अब लीड्स में बार-बार हिंसा की आग भड़क उठती है। इन तमाम इलाकों में प्रवासियों की बड़ी जनसंख्या एक समुदाय के तौर पर बसी है। यहां कई जगह तो पुलिस के लिये ‘नो-गो’ क्षेत्र बने हुए हैं। यानी कि पुलिस को वहां घुसने की इजाज़त नहीं है।
लीड्स का दंगा एक मामले में कुछ अलग है क्योंकि यह पूरी तरह से साप्रदायिक दंगा नहीं है। मगर यहां भी हिंसा प्रवासियों द्वारा ही की गई। जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि अमरीका, ब्रिटेन, युरोप और अन्य विकसित देशों में आने वाले प्रवासी पूरी तरह से स्वैच्छिक प्रवासी हैं जो किसी भी कीमत पर इन अमीर देशों में जाकर बसना चाहते हैं। उस समय वे किसी भी काग़ज़ पर ह्सताक्षर करने को तैयार होते हैं। मगर एक बार पाँव जमा लेने के बाद उनके अंदाज़ बदल जाते हैं। यदि प्रवासन की अनुमति देते समय विकसित देशों की सरकार शर्त रख दे कि सिर मुंडवाए बिना अनुमति नहीं मिलेगी तो संभावित प्रवासी पूरे परिवार का सिर मुंडवा देंगे।
एक बार सैटल होने के बाद प्रवासी अपने जैसे प्रवासियों के संपर्क में आते हैं और सरकार के विरुद्ध काम करने के सारे फ़ंडें सीख लेते हैं। सरकार से किस-किस प्रकार पैसें ऐंठे जा सकते हैं, उस पर पीएच. डी. कर लेते हैं। जैसे ही पता चलता है कि बच्चों के लालन-पालन के लिये सरकार अलग से भत्ता देती है, तो बच्चों की लाइन लगा देते हैं। ऐसे प्रवासी अपने अपनाए हुये देश की अर्थव्यवस्था में योगदान तो कुछ नहीं करते, बस एक पिस्सु की तरह सिस्टम का रक्त पीते रहते हैं।
ब्रिटेन में बच्चों को लेकर सख़्त कानून है। बच्चों को ना तो स्कूल में पीटा जा सकता है और ना ही माँ-बाप को यह अनुमति है कि वे बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार कर सकें। यदि काउंसिल को पता चलता है कि किसी परिवार में बच्चों के साथ हिंसा की जा रही है, तो सोशल केयर कर्मचारी बच्चों को ले जाते हैं और उन्हें सुरक्षित माहौल में नये अभिभावकों के पास रख दिया जाता है।
समस्या यह है कि प्रवासी जहां से ब्रिटेन में आते हैं, वहां उनके देश में बच्चों की पिटाई लगाना उनके कल्चर का हिस्सा है। उनके लिये अपने संस्कारों से मुक्ति पाना आसान काम नहीं। इसलिये वे अपने हक़ का इस्तेमाल ब्रिटेन में भी करते हैं। यही हुआ लीड्स के हेयरहिल्स क्षेत्र में। कहा जा रहा है कि एक भाई ने अपने छोटे भाई को बेदर्दी से मारा और उसे घायल कर दिया। माँ-बाप बच्चे को हस्पताल ले गये तो हस्पताल के कर्मचारियों ने सोशल सर्विस विभाग को सूचित कर दिया।
सोशल सर्विस विभाग के कर्मचारियों ने उस परिवार के बच्चों को परिवार से अलग करने का निर्णय लिया क्योंकि उस परिवार में बच्चों को हिंसा के कारण जान का ख़तरा था। जैसे ही बच्चों को ले जाया जाने लगा, लोग इकट्ठे होनवा शुरू हो गये। इतने में सोशल मीडिया ने अपना रंग दिखाना शुरू किया और आसपास के लोग इकट्ठा होना शुरू हो गये। जब भीड़ इक्ट्ठी हो जाती है तो उसका व्यवहार बदल जाता है। भीड़ का कोई एक नेता नहीं होता और सभी नेता होते हैं।
भीड़ उग्र होती चली गई। एक डबल डेक्कर बस को आग लगा दी गई। एक दुकान और बहुत से प्लास्टिक के डस्टबिनों को आग की भेंट चड़ा दिया। नारे लग रहे थे। भयानक माहौल था और थोड़ी देर में पुलिस को समझ में आ गया कि हालात पर काबू पाना उनके बस की बात नहीं है। याद रहे कि ब्रिटेन में पुलिस बल की संख्या में निरंतर ह्रास हो रहा है। उनका संख्या बल कम से कम होता जा रहा है। अब आम जनता और विशेष तौर पर समूहों में रहने वाले प्रवासी पुलिस से डरते नहीं हैं।
एक सामूहिक प्रवासी से जब पूछा गया कि वह जल्दी-जल्दी क्यों पकड़ा जाता है और ज़्यादा वक्त जेल में क्यों बिताता है। उसका जवाब सुनकर कोई भी हैरान हो जाएगा। उसका कहना था, “मेरे पास कमाई का कोई ज़रिया नहीं है। जेल में हीटिंग भी होती है; साफ़ बिस्तर होता है; समय पर पौष्टिक भोजन मिलता है।… इस मुल्क में जेल किसी होटल से कम नहीं होती… फिर मुझे काम ढूंढने की क्या ज़रूरत है?”
सरकार को दूसरे शहरों से पुलिस बुला कर हेयरहिल्स में तैनात करनी पड़ी। अगली सुबह पूरा इलाक़ा मलबे के ढेरों से अटा पड़ा था। किसी युद्ध फ़िल्म का सीन दिखाई दे रहा था जहां बम्बारी के बाद चारों तरफ़ मलबा फैला दिखाई देता है। कुछ समय के लिये तो फ़ायर ब्रिगेड, पुलिस, और एम्बुलैंस को भी दंगाइयों ने क्षेत्र में घुसने नहीं दिया। ब्रिटेन की गृहमंत्री यिवेट कूपर ने हिंसा और दंगों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वे इस हिंसा से स्तब्ध हैं। उन्होंने इस मामले पर स्थानीय पुलिस से रिपोर्ट मांगी है। उनके मुताबिक इस तरह की हिंसा के लिए ब्रिटेन में कोई जगह नहीं है। उनका कहना है कि वे लगातार अधिकारियों के संपर्क में हैं।
ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें एक व्यक्ति बस को आग लगाता दिखाई दे रहा है। लोग जगह-जगह पर आगज़नी करते दिखाई दे रहे हैं और अपने-अपने स्मार्टफ़ोन से वीडियो बना रहे हैं। गिप्टन और हेयरहिल्स की काउंसिलर सलमा आरिफ़ ने लोगों से घरों के भीतर रहने की अपील की है। हिंसा के वीडियो वायरल होने के बाद इसमें आस-पास के लोग भी शामिल हो गए। पुलिस के अनुसार, फ़िलहाल हालात सामान्य हो चुके हैं। लेकिन लोगों को हिदायत दी गई है की जब तक ज़रूरी न हो घर से बाहर न निकले। सुकून की बात यह है कि किसी के गंभीर रूप से घायल होने या मृत्यु का कोई समाचार नहीं है।
फ़्रांस, जर्मनी, स्वीडन, और ब्रिटेन में प्रवासियों के एक विशेष समूह और शरणार्थियों द्वारा मुख्यधारा में शामिल ना हो पाने और गेटो बना-बना कर एक समूह के रूप में रहना और लगातार हिंसा फैलाने और दंगा करने के किस्से समाचारों में छाए रहते हैं। समस्या की गंभीरता को सभी समझ रहे हैं, मगर हल ढूंढने का प्रयास कहीं दिखाई नहीं दे रहा। ब्रिटेन और अमरीका के बहुत से शहरों में जुलूस निकाले जा रहे हैं। वहां भी हिंसा घुसपैठ कर रही है। अब अमरीका और युरोप को इस हिंसा का हल मिलजुल कर खोजना होगा।
लेखक लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं.