जब तक इन्सान की खोजी प्रवृत्ति जीवित है, कुछ ना कु

शाकाहारी चमड़े की ईजाद

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04,अगस्त 2024, (अपडेटेड 02,अक्तूबर 2024 06:28 AM IST)
लंदन: एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने हिरण्याकश्यप का वध करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया था तब वे आधे नर और आधे सिंह के रूप में में थे। इसका वध करने के बाद नरसिंह बेहद क्रोध में थे। तब शिवजी ने अपने अंश अवतार को उत्पन्न किया जिसका नाम वीरभद्र था। तब उन्होंने नरसिंह अवतार से प्रार्थना की कि वो अपना क्रोध त्याग दें। लेकिन नरसिंह नहीं माने तब शिवजी के अंश अवतार वीरभद्र ने शरभ का रूप लिया। यह गरुड़, सिंह और मनुष्य का मिश्रित रूप था।
शरभ ने नरसिंह भगवान को अपने पंजे से उठा लिया। वे उनपर अपनी चोंच से वार करने लगा। इसके वार से नरसिंह भगवान घायल हो गए। तब उन्होंने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने भगवान शिव से निवेदन किया कि वे अपने आसन के रूप में नरसिंह के चर्म को स्वीकार करें। ऐसा कहा जाता है कि वे विष्णु जी के शरीर में नरसिंह भगवान मिल गए और शंकर जी ने इनके चर्म को अपना आसन बनाया। यही कराण है कि शिवजी बाघ की खाल पर बैठते हैं।

यानी कि हमारी सोच, सभ्यता और जीवन से पशु की खाल यानी कि चमड़ा युगों-युगों से जुड़ा है। आदि-मानव भी अपना तन ढांकने के लिये जानवर की खाल का इस्तेमाल ही करते थे। वर्तमान में भी जूते, चप्पलें, पर्स, बैग, ब्रीफ़केस, सूटकेस, कोट, जैकेट, महंगी कारों की सीट के कवर इत्यादि चमड़े से ही बनाए जाते हैं। 

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जैसे-जैसे विज्ञान ने तरक्की की चमड़े को सुन्दर, चमकीला और रंगीन बनाने की विधियां भी विकसित की गईं; नये-नये डिज़ाइनों ने जन्म लिया; चमड़ा अधिक से अधिक मुलायम होता गया। ‘जेन्युइन लैदर’ पहनना कुछ अमीरी की निशानी भी बन गया।
मगर शाकाहारी और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को जानवर की खाल से बने चमड़े से परहेज़ रहता था। सोचिये आप पूजा की थाली में पैसा रखने के लिये जेब से पर्स निकालें और हाथ में चमड़े का पर्स आये… महसूस होगा जैसे पूजा ही भ्रष्ट हो गई। एक नई चीज़ का विकास हुआ जिसे वैज्ञानिकों ने कहा – रेक्सीन। यह केमिकल से बना चमड़ा था। इसके छूने से धार्मिक गतिविधि में कोई अड़चन नहीं थी। दूसरे यह ‘जेन्युइन लैदर’ के मुकाबले सस्ती भी होती थी। इसे गीले कपड़े से साफ़ करने में भी कोई दिक्कत नहीं थी। बारिशों में इस पर फफूंद भी नहीं लगती थी। 
कहते हैं कि आजतक इन्सान के दिमाग़ का केवल दस प्रतिशत इस्तेमाल हुआ है। सोच कर हैरानी होती है कि यदि दिमाग़ का पचास प्रतिशत इस्तेमाल हो गया तो विश्व क्या नया रूप अपना लेगा। इसलिये इन्सान का दिमाग़ लगातार कुछ न कुछ नया सोचता रहता है। 
अब जैसे चमड़े की ही बात लें; चमड़े के उत्वादों को तैयार करने के लिये हर वर्ष अरबों जानवरों का वध करना पड़ता है। दुनिया का चमड़ा उद्योग पर्यावरण के लिये कितना ख़तरनाक है इस बात का अंदाज़ लगाना आसान नहीं। जानवर की खाल को निकालने से लेकर उसे चमड़े का प्रोडक्ट बनाने तक की प्रक्रिया काफी लंबी होती है और इसके लिए बहुत से पानी और केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इस कारण यह पर्यावरण के लिए और भी अधिक खतरनाक बन जाते हैं।

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भारत में शाकाहारी भी बहुत तरह के होते हैं। पहले तो नॉर्मल शाकाहारी जो अंडा या माँस नहीं खाते। कुछ हैं जो कहते हैं जी हम अंडा तो खा लेते हैं मगर मीट मछली नहीं। वे अपने आपको एगेटेरियन कहते हैं। एक थोड़े कट्टर शाकाहारी हैं जिन्हें हम जैनी कहते हैं। वे तो लहसून और प्याज़ भी नहीं खाते। अब एक नये तरह के शाकाहारी होते हैं जिन्हें वेगन कहा जाता है। वे किसी भी प्रकार के खाद्य का सेवन नहीं करते जो कि जानवरों के शरीर से निकाला गया हो। यानी कि दूध, दही और पनीर भी नहीं खाते। पूर्णरूपेण शाकाहारी…

अब बाज़ार में ‘वेगन चमड़े’ का भी आगमन हो चुका है। ‘पुरवाई’ के पाठक शायद हैरान हो कर सोचें कि भला बिना जानवर के चमड़ा कैसा! मगर आज से चार-पाँच वर्ष पहले मेक्सिको मे इस ‘वेगन चमड़े’ के बारे में समाचार सार्वजनिक हुआ था। इस आविष्कार के जनक दो युवा दोस्त हैं – एंड्रियन लोपेज़ वेलार्दे और मार्टे कज़ारेज़। इन दोनों ने ‘कैकटस पौधे’ से ऑर्गैनिक चमड़ा बनाने का अजूबा कर दिखाया है।  ध्यान देने लायक बात ये है कि यह ’वेगन चमड़ा’ ‘सेमी बायो डिग्रेडेबेल’ भी है। इस ‘वेगन चमड़े’ में फ़ैशन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं के मुताबिक तमाम विशेषताएं मौजूद हैं।
पशु-प्रेमियों के लिये यह समाचार विशेष रूप से सुखदाई हैं क्योंकि ‘कैकटस पौधे’ से बनाए गये इस ’वेगन चमड़े’ से बनाए उत्पादों का जीवन काल दस वर्ष तक आंका जा रहा है। इससे अरबों जानवरों की जान बचाई जा पाएगी जिनका वध केवल चमड़े के उत्पाद बनाने के चक्कर में कर दिया जाता है। इस चमड़े को इस्तेमाल करते हुए किसी प्रकार का कोई अपराधबोध महसूस नहीं होगा। 

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एड्रियन और मार्टे ने कुछ समय तक अपने प्रोजेक्ट पर मेहनत करने के बाद इसे एक व्यवसाय बनाने के लिये अपनी-अपनी नौकरी छोड़ दी। इस प्रोजेक्ट को मूर्तरूप देने में दो वर्षों के समय लगा। जब लोगों ने इस नये उत्पाद को देखा तो वे जानवरों के चमड़े और वेगन चमड़े में कोई फ़र्क महसूस नहीं कर पाए। इस चमड़े से बने बैग एकदम ओरिजिनल चमड़े के बैग के समान ही दिखते हैं। इनकी फ़िनिश में कहीं कोई कमी महसूस नहीं होती।
एक ख़ास बात यह भी है कि जो कैकटस चमड़ा बनाने में उपयोग किये जाते हैं, वे न्यूनतम पानी का इस्तेमाल करते हुए रेगिस्तानी इलाके में उगाए जाते हैं। इस तरह पर्यावरण पर बोझ बहुत कम पड़ता है।
इन दोनों मित्रों ने चमड़े को डाई करने के लिए ‘नैचुरल डाई’ का इस्तेमाल किया है, जो पर्यावरण को नुक्सान नहीं पहुंचाएगा। इसके कैकटस के पौधे से बने होने की वजह से यह आंशिक रूप से बायोडिग्रेडेबल भी है। इस इको-फ्रेंडली मटीरियल यानी कैकटस से बने वेगन चमड़े से बने उत्पादों का दाम आम चमड़े के उत्पादों से अधिक नहीं है। इसलिये ख़रीदने वाले की जेब पर भी अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। अब तो इससे जूते, कपड़े और कार के सीट कवर तक बनाए जा रहे हैं। 

वेगन लेदर से बने फ़ैशन उत्पादों को दुनिया के बड़े मंचों पर प्रदर्शित किया जा चुका है… इटली के शहर मिलान में हुए एक इंटरनेशनल फ़ैशन शो के दौरान वेगन लेदर के उत्पादों ने धूम मचा दी थी। 

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इन मित्रों की देखा-देखी अन्य बड़ी फैशन कंपनियां भी वेगन लेदर के उत्पाद मार्केट में उतार चुकी हैं मगर वो उत्पाद कैक्टस से नहीं तैयार किए गए थे। फैशन के बड़े ब्रांड एच. एन्ड एम. ने कुछ साल पहले ‘पाइन एपल लेदर’ से बनाई गई ‘वेगन जैकेट’ बाजार में उतारी थी। इसके अलावा ह्यूगो बॉस ने वेगन स्निकर्स बाजार में उपलब्ध करवाए थे।
पुरवाई के पाठक सोच रहे होंगे कि यह कैसा विचित्र कैक्टस का पौधा है जिससे चमड़ा बनाया जा सकता है। भला भारत में ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा। तो आपको बता दे कि यह कैक्टस एक रेगिस्तानी पौधा है। इनमें कांटे उगते हैं तो फूल भी। इनका तना ख़ासा मोटा होता है। सबसे बड़े आकार का कैक्टस का पौधा ‘सागुआरो’ है जो लगभग चालीस फ़ुट तक लंबा होता है। इस विशेष प्रकार का कैक्टस अमरीका के एरिज़ोना राज्य के रेगिस्तान, मैक्सिको के रेगिस्तान एवं कैलिफ़ोर्निया के पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है।  
जब तक इन्सान की खोजी प्रवृत्ति जीवित है, कुछ ना कुछ नये आविष्कार होते रहेंगे। कुछ आविष्कार एटम बम की तरह धरती का विनाश करेंगे तो कुछ वेगन चमड़े की तरह पर्यावरण को बचाने का काम करेंगे। 

लेखक लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं.