भारत में गेहूं से बनी रोटी, परांठे, पूड़ी और कई तर
ग्लूटेन फ़्री… नये ज़माने का नया भोजन!
लंदन : एक पुरानी कहावत है कि “मौलवी जी गये तो थे रोज़े बख़्शवाने, और नमाज़ गले पड़ गई!” कुछ ऐसा ही हादसा मेरे साथ भी गुज़रा है। मैं जब भारत दौरे पर था उससे पहले मुझे वायरस ने अपने लपेटे में ले लिया था। लंदन में एंटीबॉयोटिक का कोर्स किया। कोई ख़ास लाभ नहीं हुआ। भारत में एक बार फिर वायरस ने अपने होने का अहसास पूरी शिद्दत से करवा दिया। निरंतर खांसी और बुख़ार जैसा कुछ चल रहा था। वहां एक कंपाउण्ड एंटिबॉयोटिक दी गई क्योंकि वायरस के वर्तमान वेरिएंट पर सिंगल एंटी बॉयोटिक असर नहीं करती। पता चला कि वर्तमान वायरस कोरोना का सग़ा रिश्तेदार लगता है।
लंदन आकर अपने जी.पी. (जनरल प्रेक्टीशनर, यानी कि मेरा निजी डॉक्टर) से चेक करवाया तो उन्होंने कहा कि इस वायरस के लिये आजकल हम कोई दवा नहीं दे रहे। आप ख़ुद-ब-बख़ुद ही ठीक हो जाएंगे। मेरे दबाव डालने पर उन्होंने मेरा ब्लड टेस्ट करवाने का आदेश दे दिया।
एक सप्ताह बाद मेरी रिपोर्ट आई तो डॉक्टर की सर्जरी से एस.एम.एस. आया कि “ब्लड रिपोर्ट आ गई है, सर्जरी में आकर डॉक्टर से सलाह मश्विरा कर लीजिये।” मैं सोच रहा था कि मुझे किस चीज़ का इन्फ़ेक्शन है, शायद ब्लड रिपोर्ट से पता चल जाए।
सोमवार की शाम 16.45 पर जब अपने डॉक्टर से मिलने गया तो उसने सीधा बंब फोड़ दिया, “मिस्टर शर्मा आपका ब्लड शुगर लेवल बढ़ गया है। अब हम कह सकते हैं कि आप डायबेटिक हैं।” डॉक्टर मुझे कुछ इस अंदाज़ में बता रहा था जैसे मैंने कोई किला फ़तह कर लिया हो। वह कहते गये, “आपको एक दवा का नुस्ख़ा लिख कर दे रहा हूं – मेटाफ़ॉर्मिन 500mg. पहले सप्ताह एक गोली सुबह नाश्ते के बाद और उसके बाद एक गोली सुबह और एक रात को डिनर के बाद। और हां याद रहे, इस दवा के कुछ साइड इफ़ेक्ट भी हैं… उल्डी की फ़ीलिंग हो सकती है, चक्कर सकते हैं… पेट में गड़बड़ी महसूस हो सकती है, शरीर को थकान महसूस हो सकती है। मगर यह सब जल्दी हे सैटल हो जाता है।”
“उल्टी की फ़ीलिंग और चक्कर!”… मेरा घबराना बनता था। मेरे मुंह से निकला, “डॉक्टर साहब मैं रहूंगा तो तेजिन्द्र कुमार ही ना… कहीं तेजिन्दर कौर तो नहीं बन जाऊंगा!” मेरे तो दिमाग़ का फ़्यूज़ ही उड़ गया। ठीक है कि मेरे दादा जी और बाऊजी दोनों को डायबिटीज़ की बीमारी थी। मगर मैं तो अपने आप को ख़ासा एक्टिव रख रहा था। दिन में सात से दस हज़ार कदम चल भी रहा था। फिर मुझे क्यों? हर क्यों का जवाब भला जीवन में कहां मिल पाता है जो आज मिल जाता।
जब अपने कुछ करीबी मित्रों को सूचित किया तो उनकी प्रतिक्रिया कुछ ग़ज़ब की थी… लगभग सबने एक सुर में घोषित कर दिया कि अब मैं सही मायने में मॉडर्न इन्सान बना हूं। मॉडर्न कहलाने कि लिये इन्सान को डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियां होना अति आवश्यक है। जब तक आप इन त्रिदेवों की दवा नहीं ले रहे हैं आप पिछड़े हुए ग्रामीण हो सकते हैं… शहरी मॉडर्न इन्सान नहीं। अब मैं पूरी तरह से मॉडर्न हो चुका हूं – डायबिटीज़ के लिये मैटाफ़ार्मिन 500mg; उच्च रक्तचाप के लिये एमलीडोपाइन 10mg और कोलेस्ट्रॉल के लिये विविटार 10mg का सेवन कर रहा हूं। ऊपर से चिरयुवा दिखने का प्रेशर!… यही सबसे बड़ी समस्या है!
इतनी सारी मुफ़्त की सलाहें मिलने लगीं कि हकीम हरिकिशन लाल बीए की अस्थियां भी आसमान में भरतनाट्यम कर रही होंगी। सबसे बढ़िया रही – “तुसी ना ज्यादा न सोचो… शामी दो ड्रिंक लवो ते ऐश करो… डाक्टरां दी बकवास ना सुणो!” मित्रो आपको मेरी फ़िक्र है तो मेरे लिए भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं भी आपकी फ़िक्र करूं। तो मैं अब आपको मुफ़्त की सलाहें देना शुरू करने वाला हूं। मैंने ढूंढ निकाला है ग्लूटेन-फ़्री भोजन!
अब आप पूछेंगे कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी। तो बता दूं कि डॉक्टर ने पहले तो गंभीरता से कहा, “मिस्टर शर्मा, किसी भी डायबिटीज़ के मरीज़ के लिये चार सफ़ेद चीज़ें किसी दुश्मन से कम नहीं हैं। चीनी, चावल, गेहूं का आटा और केला!” केले के नाम पर पहले मैं चौंका, फिर ध्यान आया कि छिलके के भीतर से तो केला सफ़ेद ही निकलता है। डॉक्टर ने मेरे चेहरे पर आए भावों को अपने हिसाब से पढ़ा और कहा, “नहीं, नहीं, अगर आपकी पत्नी सफ़द है तो कोई डरने की बात नहीं है!”
तो मित्रो, मेरे लिये यह आवश्यक था कि मैं ढूंढूं कि यदि मुझे रोटी और चावल नहीं खाना तो उसके बदले में क्या खाया जा सकता है। चाय में चीनी तो मैं कई वर्षों से नहीं ले रहा। तो पता चला कि गेहूं और कुछ अन्य अनाजों में एक प्रोटीन होता है ‘ग्लूटन’ जो उनके आटे में लोच पैदा करता है। यह एक तरह का लसलसा पदार्थ है जो खाद्य पदार्थ को एकसाथ बांधे रखता है जिससे उनके आकार को बनाने में सहायता मिलती है। जैसे गेहूं की रोटी बनाते समय उसके कोने फटते नहीं जबकि रागी, मकई और कुछ अन्य आटों की रोटियां पूरी तरह से गोल बनानी आसान नहीं होतीं। मकई और रागी में ग्लूटन नहीं होता। ग्लूटन पेट के की रोगों और आर्थराइट्स वगैरह में नुक्सान पहुंचाता है।
ग्लूटन से एक विशेष रोग उत्पन्न होता है जिसका नाम है – सीलिएक। सीलिएक रोग एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है जो ग्लूटेन के सेवन से प्रेरित होता है। अगर आपको गेहूं (ग्लूटन) से एलर्जी है और आप कुछ ऐसा खाएं जिसमें गेहूं हो, तो आपको आंखों में खुजली या पानी आने या सांस लेने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है।
यदि आपको ‘सीलिएक रोग‘ है और ग़लती से ग्लूटेन का सेवन कर लेते हैं, तो आप कुछ ऐसे लक्षण महसूस कर सकते हैं: पेट में दर्द, खून की कमी, सूजन, हड्डी या जोड़ों का दर्द, कब्ज़, दस्त, गैस, नाराज़गी, खुजली, फफोलेदार दाने (डॉक्टर इसे डर्मेटाइटिस हर्पेटिफोर्मिस कहते हैं), सिरदर्द एवं थकान, मुंह के अल्सर, मतली, वज़न में कमी।
जिन पांच अनाजों में ग्लूटेन नहीं पाया जाता है उनका सेवन सेहत के लिये अच्छा हो सकता है। मकई या मक्का, क्विनोआ, जई (ओट्स), सोया और साबूदाना। गेहूं या चावल के मुकाबले ग्लूटेन फ्री अनाज को पचाना थोड़ा आसान होता है। ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से पेट फूलना, गैस, कब्ज और पेट में दर्द जैसी समस्याओं से राहत मिल सकती है।
ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से शरीर के एनर्जी लेवल को बढ़ाने में मदद मिलती है। ग्लूटेन फ्री अनाज में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो शरीर की एनर्जी को बढ़ाने में मदद करती है। ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से हड्डियों और शरीर के ज्वाइंट्स के दर्द को खत्म करने में मदद मिलती है। जिन लोगों को घुटनों में दर्द, पीठ में दर्द की समस्या होती है उन्हें नियमित तौर पर ग्लूटेन फ्री अनाज का सेवन करने की सलाह दी जाती है।
ग्लूटेन युक्त अनाज में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो स्किन संबंधी परेशानियों को बढ़ा सकते हैं। ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से स्किन प्रॉब्लम से राहत दिलाने में मदद मिलती है। कई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि ग्लूटेन फ्री अनाज का सेवन करने से चेहरे के पिंपल्स, दाग और धब्बों से राहत पाई जा सकती है। फल और हरी सब्ज़ियों में भी ग्लूटेन नहीं पाया जाता। जो लोग मांसाहारी हैं वे आसानी से अंडा, चिकन, मछली वगैरह खा सकते हैं। और हां शाकाहारियों के लिये दालें मौजूद हैं।
भारत में बड़े पैमाने पर गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है। गेहूं से बनी रोटी, परांठे, पूड़ी और कई तरह के पकवान रोजाना बड़े पैमाने पर बनते हैं और खाए जाते हैं। हम ने भी बचपन में माँ के हाथ के परांठे पूरियां खाई हैं। बड़े होकर तरह-तरह की डबल रोटियां और फ़ास्ट फ़ूड खाये… पिज्ज़ा और बर्गर उड़ाए। ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और शुगर लेवल बढ़ाए… अब खा रहे हैं गोलियां और ग्लूटेन फ़्री अनाज…
लेखक लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं.