चुनावों से पहले ज्ञानवापी सर्वे में मंदिर का खुलासा
वाराणसीः चुनावों से पहले ज्ञानवापी मामले से जुड़ी एएसआई की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है। 24 जनवरी को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें वादी पक्ष को सर्वें रिपोर्ट दिए जाने का आदेश दिया गया। वहीं, अगले ही दिन यानी 25 जनवरी को रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, ज्ञानवापी में मंदिर की संरचना मिली है। हालांकि, मामले को अभी 1991 के पूजा स्थल कानून की परीक्षा से गुजरना होगा।
एएसआई रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी बड़ा हिंदू मंदिर था। सर्वे के दौरान 32 जगह मंदिर से संबंधित प्रमाण मिले हैं। पक्षकारों ने जो सर्वे रिपोर्ट दी है वह 839 पेज की है। पश्चिमी दीवार हिंदू मंदिर का हिस्सा है। इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। जो स्तंभ मिले हैं, वो हिंदू मंदिर के हैं। उसका दोबारा इस्तेमाल किया गया है। देवनागरी, ग्रंथा, तेलुगु और कन्नड़ भाषा में लिखे शिलालेख भी मिले हैं। जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। एक जगह महामुक्ति मंडप लिखा है। यह महत्वपूर्ण साक्ष्य है।
एएसआई के मुताबिक मंदिर 17वीं शताब्दी में तोड़ा गया था। इसकी तिथि 2 सितंबर 1969 हो सकती है। मंदिर के जो पिलर थे, उन्हीं का इस्तेमाल मस्जिद बनाने के लिए किया गया। तहखाने में हिंदू देवी.देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। अयोध्या की तरह ही मस्जिद से पहले मंदिर का स्ट्रक्चर मिला है।
हिन्दू पक्ष का दावा है कि वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को तुड़वा दिया। दावे में कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर उसकी भूमि पर किया गया है, जो अब ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।
ज्ञानवापी मामले से जुड़ी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई की रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है। गुरुवार देर शाम जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्ववेश की अदालत ने सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। इस रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानवापी परिसर में मंदिर की संरचना मिली है। इस पर हिंदू पक्ष ने अपनी जीत बताते हुए कहा है कि सर्वे रिपोर्ट से साफ हो गया कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। अब हिंदुओं को पूजा.पाठ की अनुमति मिलनी चाहिए। वहीं, दूसरी तरफ से मुस्लिम पक्ष ने कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाने की घोषणा की है।
हिंदू पक्ष का दावा शुरुआती तौर पर मजबूत हो सकता है, लेकिन अभी मामले को वाराणसी में सिविल कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के सामने उस कानूनी परीक्षा से भी गुजरना होगा। इसके बाद ही तय होगा कि ज्ञानवापी परिसर पर मालिकाना हक का मुकदमा चल सकता है या नहीं। दूसरा पक्ष पूजा स्थल अधिनियम 1991 का हवाला देकर इस पर संवैधानिक रोक लगाने की मांग कर रहा है।
देश में जब भी इस ज्ञानवापी मामले की चर्चा होती है तो उसमें 1991 के पूजा स्थल कानून का जिक्र किया जाता है। वर्तमान में वाराणसी में सिविल कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उन याचिकाओं की सुनवाई हो रही है कि क्या ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व का मुकदमा चल सकता है। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 इस पर संवैधानिक रोक लगाता है।
इससे पहले मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका में वाराणसी कोर्ट के आदेश को पूजा स्थल कानून 1991 का उल्लंघन बताया गया था। याचिकाकर्ता ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 की धारा 2, 3 और 4 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि ये तीनों धाराएं संविधान की मूल भावना और प्रस्तावना के खिलाफ हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 1991 के कानून के तहत धार्मिक स्थान की प्रकृति का पता लगाना वर्जित नहीं है। किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाना अधिनियम की धारा 3 और 4 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हो सकता है।
हिंदू पक्ष के सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि अब सील वजूखाने के सर्वे का अनुरोध किया जाएगा। बता दें कि मां शृंगार गौरी केस 2021 में एक आदेश के तहत ज्ञानवापी परिसर में सर्वे हुआ। सर्वे के दौरान ही 16 मई 2022 को ज्ञानवापी स्थित वजूखाने में आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग मिलने का दावा किया गया। उसी दिन हिंदू पक्ष की मांग पर अदालत के आदेश से वजूखाने को सील कर दिया गया।
जैन ने बताया, पूजा स्थल अधिनियम 1991 की धारा 3 और 4 में धार्मिक स्वरूप का जिक्र किया गया है। 15 अगस्त 1947 को जिस धर्म स्थल का जो धार्मिक स्वरूप था वही रहेगा। ऐसे में सबसे मूल सवाल यह उठता है कि यदि किसी धार्मिक स्थल को तोड़ा गया है तो क्या उसका धार्मिक स्वरूप खत्म हो जाएगा। 15 अगस्त 1947 को किसी धर्म स्थल का स्वरूप क्या होगा, अब अदालत अपने फैसले में यह निर्धारित करेगी। यह कानून कोई ब्लैंकेट बैन नहीं है। यदि कोई मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है तो उसकी प्राप्ति के लिए मुकदमा किया जा सकता है। इसमें यह कानून बाधा नहीं बनेगा। सिविल कोर्ट में धार्मिक स्वरूप तय हो सकता है।
जैन ने बताया, सितंबर 2022 में वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी केस में अपने फैसले कहा था कि नवंबर 1993 तक परिसर में हिंदू पक्ष पूजा करता आया है। ऐसा कथन उनके वाद में है। इसलिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 इस केस में लागू नहीं होता।