भारत में राम की प्राण प्रतिष्ठा की क्या आवश्यकता?
दुबईः भारत में राम की प्राण प्रतिष्ठा की क्या आवश्यकता? जब भारत के कण - कण में राम प्रतिष्ठित हैं। यदि किसी के प्राणों में प्रतिष्ठा की आवश्यकता है तो हर एक भारतीय की आत्मा में, देश के राजनेताओं, व्यापारियों, शिक्षा संस्था संचालकों और पुलिस में। जब तक एक - एक की आत्मा में राम का सार नहीं बैठ जाता जब तक भवन निर्माण और उसमें मूर्ति स्थापित कर देने से सिर्फ पर्यटन बढ़ेगा राम का वास नहीं होगा। क्या 22 जनवरी 2024 के बाद देश में महिलाओं से बदसलूकी, नेताओं का आचरण, बलात्कार, व्यापारियों की मनमानी, किसानों को उचित मूल्य न मिलना, सड़क पर गुंडागर्दी, गरीब का शोषण, जोड़ - तोड़ की सरकारें आदि बंद हो पाएगा? यदि ये सब नहीं हो सकता तो रामराज्य की संकल्पना को हम और आप मात्र एक भवन के निर्माण के कुछ और नहीं पा सकते। भवन निर्माण से बेहतर है चरित्र निर्माण हो। निमंत्रण आदि में फंसे पक्ष हो या विपक्ष हर किसी नेता के आचरण में जब तक शुद्धता नहीं आएगी तो इस विशाल भवन में भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम नहीं विराज सकते। भारत के संविधान की मूल प्रति में भगवान श्रीराम को संविधान निर्माताओं ने यूं ही नहीं अंकित किया है उसके पीछे सउद्देश्य यह धारणा रही होगी कि भारत को 1947 के बाद उस रामराज्य की ओर ले जाया जाए जहाँ प्रत्येक व्यक्ति के साथ पशु- पक्षी, जनवरी, कीटक तक की सुध लेने स्वयं राजा राम वेश बदल कर चले जाया करते थे। जिनके राज्य में न्याय की अवधारणा लिखी गई हो। लेकिन उसी संविधान को अपनाने वाले देश में न्याय बिकने में देर नहीं लगती, स्त्री, गरीब का शोषण करने में वाहवाही लूटी जाती है। नेता सरेआम नोट पर वोट खरीदते हैं, विधायक बिकने लगते हैं, शिक्षा संचालन शिक्षा को बेचने लगते हैं, किसान सरकार के सामने बिलबिलाते दिखते हैं। दोस्तों, भीड़ में चलने से बेहतर है, फेसबुकिया श्रीराम को अपनाने से बेहतर है हृदय में अपनाएं, ध्वजों में श्रीराम को अंकित करने से बेहतर है आचरण में अंकित करें, दीपावली मनाने से पहले पड़ोस के घर को रौशन करना सीखें। ’इस समारोह में शामिल होने वाले प्रत्येक नेता, विशेष आमंत्रित मेहमान, व्यापारी, सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषकर राजनीतिक युवा कार्यकर्ताओं हर एक से करबद्ध निवेदन है कि जब आप समारोह से लौटें तो प्रभु श्रीराम के उस संघर्ष को याद करें, उस 14 वर्ष के समय को याद कर लौटिए कि उन्होंने साधारण राजकुमार राम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र निर्माण कैसे किया। आप भी कुल 14 मिनट खुद के विवेक को समझाकर उस समय को जीने की कोशिश कीजिए और तभी लौटिए जब आपके अंदर तमाम रावण रूपी अवगुणों पर आप विजय प्राप्त कर लें। उत्सव मनाइए लेकिन सिर्फ एक दिन नहीं अपितु हर दिन क्योंकि श्रीराम का दिन नहीं होते उनका तो पूरा जीवन होता है।’
लेखक रवि शुक्ला, एक शिक्षक और मोटिवेशनल स्पीकर हैं