रिश्वत किस्तों में
लंदन: गुजरात का भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान रहा है। महात्मा गान्धी और सरदार पटेल गुजरात से ही थे। ब्रिटेन, अमरीका और कनाडा में गुजराती मूल के भारतवंशियों की संख्या ख़ासी बड़ी है और उन्होंने अपने अपनाए हुए देशों में सम्मान भी खासा अर्जित किया है। स्वास्थ्य सेवा, फ़ार्मेसी, अकाउंट्स, बैंकिंग, मोटेल इंडस्ट्री… हर क्षेत्र में गुजरात के भारतीय मूल के लोग मिल जाएंगे।
मोरारजी देसाई के रूप में गुजरात ने भारत को एक गांधीवादी प्रधानमंत्री भी दिये जो कांग्रेस पार्टी के नहीं थे। दरअसल 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ और कांग्रेस के बहुत से वरिष्ठ नेता अपनी पार्टी छोड़ कर जनता पार्टी से जुड़ गये और मोरारजी भाई उसी साल जनता पार्टी के नेता के रूप में प्रधानमंत्री बने। पूरे विश्व में स्वामी नारायण मन्दिरों के निर्माण ने विदेशों में हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। ब्रिटने में भी तो गुजराती रेस्टॉरेण्ट और थियेटर भी अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाते हैं। पिछले कुछ सालों से राजनीति में भी एक वाक्य बहुत प्रचलित हुआ है – गुजरात मॉडल! वर्तमान प्रधानमंत्री और उस समय के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह गुजरात को प्रगति की राह पर डाला उसे ही गुजरात मॉडल कहा जाता है। लोग उस मॉडल की तारीफ़ भी करते हैं और मज़ाक भी उड़ाते हैं।
एक कहानी बचपन में सुना करते थे कि एक राजा के यहां एक मंत्री बहुत भ्रष्ट था। हर काम में कोई न कोई तरीका निकाल ही लेता था रिश्वत लेने का। एक दिन अपने महामंत्री की सलाह पर उसने अपने भ्रष्ट मंत्री को एक काम सौंपा कि तुम सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक समुद्र की लहरें गिना करोगे। बेचारा मंत्री पहली बार पेशोपश में पड़ गया कि अब वो अपनी ऊपर की कमाई कैसे कर पाएगा। मगर उसका दिमाग़ भी शातिर था। उसने घोषणा करवा दी कि समुद्र के उस इलाके से कोई भी नाव या जहाज़ नहीं गुज़र सकता जहां उसे लहरें गिनने का काम दिया गया है। राजा का हुक्म है कि मुझे लहरें गिननी हैं और नाव व जहाज़ के चलने से लहरों के गिनने में कठिनाई होती है।
जिन लोगों को नाव या जहाज़ उस रास्ते से ले जाना आवश्यक होता वे इस मंत्री को रिश्वत देते और वहां से निकल लेते। मंत्री का ऊपरी आय का स्त्रोत फिर से शुरू हो गया। लगता है कि गुजरात के कुछ अधिकारियों ने बचपन में यह कहानी अवश्य सुनी होगी। इसलिये इसी वर्ष जून के महीने में जब पूरा भारत सूर्य देवता की गर्मी की मार के सामने तपा जा रहा था, इन अधिकारियों ने कुछ ऐसा कारनामा कर दिखाया कि अन्य विरोधी राजनीतिक दलों को गुजरात मॉडल पर निशाना साधने का एक और मौक़ा मिल गया। कहने वाले तो मज़े ले-लेकर चटख़ारे ले रहे हैं।
पाठक अवश्य ही अधीर हो रहे होंगे कि आख़िर किस्सा क्या है… आज गुजरात ही क्यों हावी हो रहा है। तो लीजिये आपके साथ साझा कर ही लेता हूं। हमने सुना हुआ है कि घर या फ़्लैट लेना हो, या फिर कार, फ़्रिज, स्कूटर, मोटर साइकिल, टेलिविज़न आदि ख़रीदने हों तो एक ई.एम.आई. तय करके किस्तों में पैसा उतारा जा सकता है। मगर गुजरात के एक ख़ास विभाग के अधिकारियों ने तो अजब-गजब काम कर डाला… उन्होंने तो रिश्वत के लिये भी किस्तों की दर तय करनी शुरू कर दी है।
इस मुद्दे को कुछ इस तरह भी देखा जा सकता है कि गुजरात के अधिकारी ख़ासे नरम दिल वाले भी हैं और बड़े दिल वाले भी। जब उन्हें पता चला कि वो बकरा जिसे वो काटने जा रहे हैं, बेचारे के शरीर में न तो ख़ून है और न ही हडिड्यों पर माँस, तो उनका दिल पसीज जाता है। वे सामने वाले पर तरस खाकर रिश्वत के पैसे समान किस्तों पर लेने को तैयार हो जाते हैं।
जो मुख्य किस्सा समाचार एजेंसियों के हवाले से सामने आया है वो गुजरात के सूरत शहर से सटे एक गाँव का है। वहां एक ग्रामीण से ज़मीन समतल करने के लिये ₹85,000/- की रिश्वत तय की गई। उस ग्रामीण की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। उसने गिड़गिड़ा कर अपनी स्थिति अधिकारियों को समझाई। अब मसला यह कि इस मामले को सुलझाया कैसे जाए। डर था कि ग्रामीण रिश्वत के भार तले दब कर कहीं आत्महत्या ना कर ले। लिहाज़ा अधिकारियों के बीच का व्यापारी अचानक सनद हो उठा। उसने ग्रामीण को बहुत स्नेहपूर्ण भाषा में कहा, “वत्स, परेशान ना हो। तुम्हारा दर्द हम समझते हैं। तुम ऐसा करो कि ₹35,000/- पहली किस्त के रूप में और बाक़ी के पैसे तीन बराबर किस्तों में चुका दो। हम तुम पर विश्वास करते हैं।
बेचारा ग्रामीण! मरता क्या ना करता? उसके पास कोई और विकल्प था कहां… वो मान गया। मगर गुजरात के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ए.सी.बी.) द्वारा इसी साल ऐसे दस मामले दर्ज किए गए हैं जिनमें भ्रष्ट अधिकारी आम जनता से किस्तों में रिश्वत वसूल रहे हैं। ऐसा ही एक अन्य मामला साबरकांठा ज़िले का भी सामने आया है जिसमें दो पुलिसकर्मियों ने एक किसान से कुल ₹10 लाख की मांग की। मामला बिगड़ते देख उन्होंने किसान को चार लाख रुपये की पहली किस्त देने पर राज़ी कर लिया। और चार लाख मिलने के बाद वे भाग खड़े हुए।
एंटी करप्शन ब्यूरो के निदेशक शमशेर सिंह का कहाना है कि किस्तों में रिश्वत लेने का यह चलन नया नहीं है। दरअसल यह काफ़ी लंबे अरसे से चला आ रहा है। सच तो यह है कि यह व्यवस्था को काफ़ी प्रभावित कर रहा है। संस्थागत भ्रष्टाचार का यह एक ख़ूबसूरत नमूना है। उन्होंने स्थिति को विस्तार से बताते हुए कहा कि इस तरीके के तहत पीड़ित काम शुरू होने से पूर्व पहली किस्त भरने के लिये सहमत हो जाते हैं। काम पूरा होने के बाद या तो पूरी राशि का भुगतान किया जाता है या फिर कुछ किस्तों में। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि पीड़ित अपना मन बदल लेते हैं और दूसरी या अगली किस्त देने के स्थान पर एंटी करप्शन ब्यूरो से संपर्क कर लेते हैं।
शमशेर सिंह ने साफ़ किया कि ए.सी.बी. गुजरात में इस तरह के भ्रष्ट आचरण से निपटने के लिये अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं। हमारा आग्रह है कि नागरिक हमें रिश्वतखोरी या जबरन वसूली के किसी भी मामले में संपर्क करें। गुजरात एंटी करप्शन डिपार्टमेंट के मुताबिक हाल के दिनों में इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। किस्तों में घर, कार, सोने के आभूषण खरीदना… सोशल मीडिया पर लोगों की राय है कि गुजरात के अधिकारियों ने भी किस्तों में रिश्वत लेना शुरू कर दिया है।
वैसे गुजरात को अकेला ना होने देने के लिये उत्तर प्रदेश का बरेली शहर भी खुल कर सामने आ गया। बरेली में हैरान करने वाला मामला सामने आया है, और वह भी रिश्वतखोरी का मामला है। इस मामले में प्रेम नगर थाना क्षेत्र में तैनात दारोगा रामौतार ने ई.एम.आई. पर रिश्वत लेने की हामी भरी थी और पहली किस्त ₹50,000 की पहुंच भी गई थी। दारोगा ने मुकदमे से नाम निकालने के एवज़ में दो लोगों से पांच लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी। जब उक्त लोगों ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई तो दारोगा ने पीड़ितों पर अपनी दरियादिली दिखाई। ईएमआई की तरह किस्तों में रिश्वत तय कर ली। जिसकी शिकायत विजिलेंस से की गई। विजिलेंस की टीम ने रिश्वत की पहली किस्त लेते दरोगा को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया।
भारत के प्रधानमंत्री ने हमेशा दावा किया है कि ना तो खाऊंगा ना ही खाने दूंगा। हो सकता है कि उन्हें बहुत से मामलों के बारे में ख़बर ना मिलती हो। मगर गुजरात और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को तो बाक़ायदा रिपोर्ट मिलती होगी। वैसे जो भी अधिकारी रिश्वत लेता है, उसका तकिया क़लाम होता है, “जी ऊपर तक पैसा देना होता है।” सवाल यह उठता है कि यदि भ्रष्टाचार ऊपर तक फैला हुआ है तो इसका इलाज कैसे होगा और कौन करेगा।