पिछड़े वर्ग के हितों के हिमायती बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न
नई दिल्ली...पटनाः दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान श्भारत रत्नश् से नवाजा जाएगा। उन्हें मरणोपरांत यह सम्मान देने की घोषणा हुई है। कर्पूरी ठाकुर की 24 जनवरी को 100वीं जयंती है। इससे एक दिन पहले केंद्र सरकार ने उन्हें यह सम्मान देने का एलान किया है।
आम तौर पर केंद्र सरकार गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों और कभी.कभी भारत रत्न का एलान करती है। इस बार सरकार ने गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले ही भारत रत्न के बारे में एलान कर दिया है। 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती की पूर्व संध्या पर उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा हुई है।
सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले बिहार के तीसरे व्यक्ति
कर्पूरी ठाकुर पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे। वे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले बिहार के तीसरे व्यक्ति होंगे। उनसे पहले प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और लोकनायक जयप्रकाश नारायण को यह सम्मान दिया गया था। बिहार में जन्मे बिसमिल्लाह खां को भी भारत रत्न से नवाजा जा चुका है। हालांकि, उनकी कर्मभूमि उत्तर प्रदेश का बनारस रहा। उनका परिवार आज भी काशी में रहता है।
करीब 68 साल पहले शुरू हुए इस सर्वोच्च सम्मान से अब तक 48 हस्तियों को सम्मानित किया जा चुका है। पहली बार साल 1954 में आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राज गोपालाचारी, वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन और सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दिया गया था।
पीएम मोदी ने क्या कहा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, "मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्मशती मना रहे हैं। दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक....राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है। यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान है, बल्कि हमें अधिक न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है।"
वरिष्ठ भाजपा नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा, "कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए अति पिछड़े वर्ग के नरेंद्र मोदी की जरूरत पड़ी। नीतीश और लालू अतीत की कई केंद्र सरकारों में रसूख वाले पदों में रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न नहीं दिलवा सके।
राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा
अनुभवी समाजवादी नेता और राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी कहते हैं, "सत्ता में उनका कार्यकाल भले ही लंबे समय तक नहीं चला। लेकिन उन दिनों एक गरीब परिवार और अत्यंत पिछड़ी और संख्यात्मक रूप से छोटी जाति से आने वाले व्यक्ति के लिए सत्ता की सर्वोच्च कुर्सी तक पहुंचना कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। तिवारी के पिता दिवंगत रामानंद तिवारी ठाकुर के साथियों में से एक थे।"
तिवारी ने कहा, "कर्पूरी ठाकुर जयप्रकाश नारायण के करीबी थे। हालांकि बाद में वह राम मनोहर लोहिया के भी करीब हो गए। उनके नेतृत्व के गुण ऐसे थे कि तथाकथित निचली जाति से होने के बावजूद ऊंची जाति के लोग उनका सम्मान करते थे। ठाकुर को निवर्तमान नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद अपना गुरु कहते हैं। ठाकुर ने पहली बार 1970 में सत्ता की सर्वोच्च सीट हासिल की थी, जो एक साल से भी कम समय तक चली।"
ठाकुर की उपलब्धियां आंकड़ों से कहीं अधिक
हालाँकि ठाकुर ने 1952 में हुए पहले राज्य विधानसभा चुनाव में ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए। समाजवादी नेता 1967 में प्रमुखता से उभरे, जब राज्य ने महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में अपनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार देखी। उप मुख्यमंत्री बने ठाकुर के पास शिक्षा विभाग भी था और उन्हें अक्सर स्कूलों में अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी को हटाने के लिए याद किया जाता है।
तिवारी ने कहा, "यह एक बहुत ही साहसिक कदम था। बिहार जैसे राज्य में अधिकांश छात्रों के लिए अंग्रेजी में दक्षता हासिल करना आसान नहीं था। खासकर वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों के लिए। ठाकुर के पास इसे पहचानने की दूरदर्शिता थी और एक कदम उठाने की हिम्मत थी, जिसका अन्य लोग देश के विभिन्न हिस्सों में अनुकरण किया गया।
पांच साल बाद वह जनता पार्टी की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री के रूप में लौटे, जो कांग्रेस के विरोधी संगठनों का एक समूह था। इसने आपातकाल के खिलाफ जनता के गुस्से के कारण पार्टी को केंद्र की सत्ता से बाहर कर दिया था। तिवारी ने कहा, "यह सच है कि ठाकुर ने कभी भी सत्ता में पूरे पांच साल का कार्यकाल नहीं बिताया। मुख्यमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकालों की कुल अवधि तीन साल से कम होगी। लेकिन उनकी उपलब्धियां आंकड़ों से कहीं अधिक बड़ी हैं।"
कर्पूरी ठाकुर के बेटे और सचिव ने क्या कहा
कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा, "मैं सरकार को यह फैसला लेने के लिए बिहार के 15 करोड़ लोगों की ओर से धन्यवाद देना चाहता हूं।"
वहीं, कर्पूरी ठाकुर के निजी सचिव रहने के बाद पत्रकारिता में आए बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने कहा, "वह सही मायने में इसके हकदार थे। आज उनके नाम पर जातिगत गोलबंदी भले हो रही हो। वह ऐसा नहीं करते थे। अगड़ा.पिछड़ा का भाव उस हिसाब से नहीं था। उनके मन के आसपास रहने वाले लोग भी अब इस दुनिया में नहीं हैं, वरना यह खुशी और ज्यादा होती। मैं खुश हूं। बिहार खुश है। यह जननायक को वास्तविक हक मिलना है। इसकी प्रतीक्षा उनके निधन के बाद से की जा रही थी।
एक बार प्रधानमंत्री रहते हुए चौधरी चरण सिंह जननायक के घर गए। हुआ ये कि घर की चौखट छोटी थी और चौधरी जी को सिर में चोट लग गई। चरण सिंह ने कहा, “कर्पूरी, इसको ज़रा ऊंचा करवाओ।” कर्पूरी ठाकुर जी ने कहा, “जब तक बिहार के ग़रीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?”