CRICKET : नहीं रहे 'द सरदार ऑफ स्पिन' बिशन सिंह बेदी
नई दिल्ली: टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और बायें हाथ के दिग्गज स्पिनर बिशन सिंह बेदी सोमवार को देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की आंखों को नम करके इस संसार को अलविदा कह गए. बेदी को 'द सरदार ऑफ स्पिन' के रूप में याद किया जाता रहेगा. बिशन सिंह बेदी का जन्म अमृतसर में 25 सितंबर 1946 को हुआ. अमृतसर के गांधी ग्रांउड इस बात की गवाह है कि बेदी इस ग्राउंड में भी प्रेक्टिस करते थे.
बेदी ने एक इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया था कि वह अपने उंगलियों को शक्तिशाली व कलाई को फिलेक्सिीबल बनाने के लिए कपड़े धोते थे, ताकि बाजुओं और उंगलियों में लचकता बनी रहे. बेदी जब भी अमृतसर आते तब गांधी ग्राउंड जरूर जाते और नए खिलाड़ियों को समय समय पर प्रैक्टिस के दौरान बढ़िया खिलाड़ी बनने के गुर भी सिखाते रहे.
67 टेस्ट मैचों में 266 विकेट
स्पिन की कला में महारथ हासिल करने वाले बिशन भारत के लिए 13 सालों तक 1966 से 1979 तक का हिस्सा रहे. बेदी ने 67 टेस्ट मैचों में 266 विकेट और 10 वन-डे में सात विकेट हासिल किए. बेदी ने अपने करियर में कुल 370 प्रथम श्रेणी मैच खेले, जिसमें उन्होंने 1560 विकेट झटके. इसके साथ ही वह घरेलू क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट चटकाने के मामले में सबसे आगे हैं.
बिशन सिंह बेदी का टेस्ट पदार्पण 31 दिसंबर 1966 को वेस्टइंडीज के खिलाफ हुआ. बिशन सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने पहली बार टेस्ट मैच तभी देखा जब उन्होंने पदार्पण किया था. इससे पहले कभी भी टेस्ट क्रिकेट उन्होंने नहीं देखा था.
क्रिकेटरों ने क्या बेदी के लिए
बेदी सुनील गावस्कर से काफी प्रभावित थे. इसलिए बेदी ने अपने बड़े बेटे का नाम गावस्कर के सर नाम के साथ गावस इंद्र सिंह रखा. दुनिया के महानतम गेंदबाजों में से एक पूर्व आस्ट्रेलियाई लेग स्पिनर शेन वार्न बेदी को अपना आदर्श मानते थे. वार्न का कहना था कि उन्होंने लेग स्पिन का ककहरा बेदी से ही सीखा.
पाकिस्तानी लेफ्ट आर्म फास्ट बॉलर वसीम अकरम ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा कि बिशन बेदी लेफ्ट ऑफ स्पिन के गॉडफादर थे. बेदी जब टीम के साथ होते थे या मैनेजर होते थे. उस वक्त मैं यंग लड़का था तब मेरी उनके काफी मुलाकात होती थी. वह ग्राउंड के अंदर और बाहर शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे. भारतीय क्रिकेट में बेदी को उंचा दर्जा हासिल है. मेरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ है.
बेदी का गुस्सा मैच से अधिक रोमांचक
साहिवाल में 1978 का मैच पाकिस्तान के खिलाफ बेदी के गुस्से की वजह से टीम इंडिया को गंवाना पड़ा. इस मैच में भारत को 18 गेंदों में 23 रन बनाने थे और उसके आठ विकेट बचे हुए थे. तभी पाकिस्तान के तेज गेंदबाज सरफराज नवाज ने लगातार चार बाउंसर फेंकी और किसी भी गेंद को अंपायर ने वाइड नहीं दिया. यह देख कप्तान बेदी भड़क उठे और उन्होंने अपने बल्लेबाज वापस बुला लिए. बेदी के इस फैसले के बाद पाकिस्तान को विजेता घोषित कर दिया गया. इसे लेकर उन्हें काफी विवाद का सामना करना पड़ा था.
बेदी हमेशा खिलाड़ियों के हित में सबसे आगे रहते थे यही कारण है कि अपनी कप्तानी के दौरान उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जिससे उन्हें सवालों का सामना करना पड़ा. बिशन का हमेशा से कहना रहा है कि पहले अच्छा इंसान बनना सीखो, क्रिकेट तो बाद में भी सीख लोगे. इसका एक उदाहरण 1976 में वेस्टइंडीज दौरे पर भी देखने को मिलता है.
इस दौरे पर कप्तान बने बेदी ने खराब पिच को देखते हुए टीम की दोनों पारियां घोषित कर दी थी. दौरे के तीसरे टेस्ट में ऐसी पिच बनाई गई थी कि वेस्टइंडीज तेज गेंदबाजों की घातक गेंदों ने भारत के पांच बल्लेबाजों को चोटिल कर दिया, जिस पर कप्तान बेदी ने विरोध में टीम की दोनों पारियां घोषित कर दी थीं. इसके बाद वेस्टइंडीज मैच का विजेता घोषित हुआ.
सामाजिक मसलों पर भी मुखर
बेदी यहा खेल के अलग अलग मुद्दों पर सवाल उठाते थे. वहीं समाजिक मुद्दों पर भी अपने विचार खुल कर रखते थे. एक बार बिशन सिंह बेदी दिल्ली से अमृतसर सड़क मार्ग से जाते समय लुधियाना में बैड ट्रैफिक सैंस का शिकार हुए. बेदी ने अपनी नाराजगी ट्विटर पर ट्वीट कर जाहिर की. बेदी के ट्वीट के बाद कई अन्य लोगों व लुधियाना पुलिस ने इस पर जवाब भी दिया.
ट्वीट में बेदी ने स्मार्ट सिटी लुधियाना को प्लस प्वाइंट वाला शहर बताया है लेकिन ट्रैफिक सैंस इसमें शामिल नहीं. बेदी के अनुसार सारे शहरों में यही हाल है, विशेषकर राजधानी दिल्ली का. बेदी के ट्वीट पर लुधियाना पुलिस ने भी उन्हें जवा1ब देकर उनकी इस चिंता पर प्रशंसा की और इसे शहर की गंभीर समस्या माना. अमृतसर के भी कई मुद्दों और क्रिकेट खेल पर भी वह अपनी प्रक्रिया देते थे, जिसके चलते वह हमेशा चर्चा में रहे.
फिरोजशाह कोटला ग्राउंड में अरूण जेटली की प्रतिमा स्थापित करने पर कड़ा विरोध करते हुए बेदी ने 2020 में डीडीसीए अध्यक्ष को पत्र लिखकर उनके नाम की उनके नाम की 2017 में बनायी गयी दर्शक दीर्घा से अपना नाम हटाने को कहा था. साथ ही बेदी ने डीडीसीए की सदस्यता त्याग दी थी. इस संबंध में उन्होंने विदेशों का उदाहरण दिया था जहां पर खिलाड़ियों की स्मृतियों को संजोकर रखा गया था.